सुर्ख सुबह शाम सुहानी चाहिए ।
जिंदगी भर खींचा-तानी चाहिए॥
काट कर पर्वत भगीरथ की तरह
काम की गंगा बहानी चाहिए ॥
कल जहाँ रुकते थे प्यासे काफिले
अब उसी दरिया को पानी चाहिए॥
सींच डाले जो ज़मीं को खून से ,
इस धरा को वो जवानी चाहिए ॥
मंदिरों में क़ैद ईश्वर को 'मनोज'
ख़ुद मदद अब आसमानी चाहिए॥
(मनोज दुर्बी)
4 comments:
मनोज जी, आपको पढ़कर बहुत बहुत अच्छा लगा। बहुत कीमती पँक्तियाँ हैं। वाह। चलिए मैं भी कुछ तुकबंदी कर दूँ-
अपनों ने किया है सख्त वार दिल पर।
और कहते हैं चोट की निशानी चाहिए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
MANOJ JEE,
SUBAH SUBAH AAPKI GAZAL PADHKE BHAEE MAJAA AAGAYA , KAHAN AAPKE AAPKE BAHOT DURUST HAI AUR BAHOT HI MUKAMMAL BHI... DHERO BADHAAYEE KE PATRA HAI AAP..AAPKI GAZAL ACHHEE LAGEE...
ARSH
bahut sundar gazal.badhayi sweekar karen.
मंदिरों में क़ैद ईश्वर को 'मनोज'
ख़ुद मदद अब आसमानी चाहिए॥
--बहुत खूब!!
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