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Friday, May 1, 2009

गाँधी , संविधान और माओ...

हम क्या करेंगे
इसे तय करने वाले
गाँधी ,संविधान या माओ...
कौन होते हैं ?
ये हमारे सूखे हुए पेट
और आप के
भरे हुए बाजुओं का किस्सा है ....
आप सोचते हैं
हम क्या खा कर करेंगे 'मोहब्बत' ?
हम जानते हैं
'संघर्ष' आप के बस की बात नहीं....
मोहब्बत बाजुओं-बाँहों का
लहलहाना भर नहीं है,
दो सूखे पेट
इकलौती रोटी को बाँट भी सकते हैं।
इसलिए
बिन पढ़े खाने दीजिये
मोहब्बत लिखी रोटी
सूखे पेटों को ....
वगर्ना हम क्या करेंगे ?
इसे गाँधी संविधान या माओ ,
तय नहीं करेंगे....

5 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

हम तय तो करें।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भारत में गांधी की केवल यादे बची हुई हैं।
प्रजातन्त्र की आँधी में भगदड़ सी मची हुई हैं।।

दो सूखे पेट
इकलौती रोटी को बाँट भी सकते हैं।
इसलिए
बिन पढ़े खाने दीजिये
बहुत सुन्दर।

श्यामल सुमन said...

बिन पढ़े खाने दीजिये
मोहब्बत लिखी रोटी

भावपूर्ण प्रस्तुति। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

vandana gupta said...

bahut hi bhavmayi prastuti

Vinay said...

सार्थक काव्य

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चाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलें