Warriors for green planet.

LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

Saturday, November 14, 2009

फेमिनिस्ट

अनुभव अगर कहूँ ,
तुम छीन लोगे मुझसे
'फेमिनिस्ट'
कहलाने की खुराक !
चलो मैं इसे
शोध कहता हूँ
मैंने तमाम
साहित्य
खंगाला है,
इतिहास की
कब्र
खोदी है
और यकीनन
मैं नहीं कहता,
आंकडे बोलते हैं
औरत में आदमी का हर एक फन है
आदमी की टक्कर का काइयांपन है
उठो नहीं...भड़को मत ...
ये शोधपत्र ले जाओ
अपने 'तंत्र ' को समझाओ
औरत से डरने की
ज़रूरत
नहीं है,
औरत भी अपनी है/
पराई
नहीं है...

7 comments:

निर्मला कपिला said...

अरे आप डरते हैं औरत से? डरता वि है जिसके अपने अंदर कुछ कमी होती है। औरत जब तक कमजोर है आदमी से डरती है जब आदमी कम्जोर है तो औरत से बस इतनी सी बात है बहस की गुँजाईश ही कहाँ रही शुभकामनायें लगता है बीवी से डरे हुये हैं हा हा मजाक है इसे अन्यथा न लें।

Deepak Tiruwa said...

main nahin Nirmala ji 'system'

Deepak Tiruwa said...

aapko nahin lagta ki auraton ki achanak ghuspaith se hamara 'तंत्र'ghabraya huwa hai...unhen rokne ki tikdamen bhida raha hai...

विश्व दीपक said...

अगड़म-तिकड़म मैं नहीं जानता.....लेकिन हाँ कविता अच्छी लगी। विशेषकर अंतिम पंक्तियाँ।

-विश्व दीपक

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

छा गये दोस्त ,बहुत दामदार बात बेबाक अंदाज़ में कही है,लिखते पढते रहें,कभी आईये इधर भी, पता है:
www.sachmein.blogspot.com

अर्कजेश said...

औरत से डरने की
ज़रूरत नहीं है,
औरत भी अपनी है/
पराई नहीं है...

बात को पकड पाया मैं ।
यह वैसा ही डर जैसे हिन्‍दी चीनी भाई भाई बोलना ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

दीपक जी,
ये तो वही बात हो गई...

''हां ये सच है मान लिया,
सच कहने से डरता हूं''

हा हा हा.....
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद