ख़बर के लिए ऐसी दशा में अभीष्ट है की वह अपनी भूमिका का जीर्णोद्धार करे। उसकी सार्थकता अख़बार के पन्ने भर कर अंततः रद्दी हो जाने या महज़ टी .आर .पी. के खेल में नहीं है , उसे चाहिए कि वह धनात्मक रूप से अपनी काया में कुछ फेर - बदल करे ।
Tuesday, January 13, 2009
ख़बर बासी क्यों हुई...?
अब या तो ख़बर उद्वेलित करने के लिए छापी या प्रसारित नहीं की जाती या रोज़ सुबह, 'आज की ताज़ा ख़बर / ब्रेकिंग न्यूज़ ' ,कह कर अख़बार टी. वी. वाले हमें ठग जाते हैं ,.....क्योंकि ख़बर तो बासी हो चुकी है। हमारे निरंतर पढ़ने-देखने के अभ्यास और उसकी निरंतर प्रसारण की नियति ने उसकी ताज़गी को लील लिया है और कुछ न कर पाने के कारण वह बासी हो गयी है । उदाहरण के लिए महिला सन्दर्भ की बात करें ,क्या महिला छेड़ -छाड़ ,उत्पीड़न ,बलात्कार जैसी सनसनीखेज़ ,चटपटी , मसालेदार ,ख़बरों की उत्पादक है ?...या खबरें उत्पीड़न-कर्ताओं के संख्या बल का advertisement करना चाहती हैं ?
Monday, January 12, 2009
शोला था जल बुझा हूँ ...
नए दौर में 'फ़राज़' की शायरी के बहुत से मुरीदों का तआर्रुफ़ उनसे उनकी ग़ज़लों किसी के मक़ते के ज़रिये हुआ है ।मेरे मुआमले में ये मक़ता रहा 'मेहदी हसन साहब' की गायी 'फ़राज़' की मशहूर ग़ज़ल 'शोला था जल बुझा हूँ ....' का ............' कब मुझको ऐतराफ़ -ए-मोहब्बत न था ' फ़राज़ '/कब मैंने यह कहा था सजाएं मुझे न दो ',.....और फिर मेहदी हसन , गुलाम अली ,जगजीत सिंह और दूसरे कई गुलूकारों की आवाज़ के साथ 'फ़राज़ ' से मुलाक़ातों का सिलसिला चल निकला । अहमद फ़राज़ का जाना दरअसल एक दौर का,एक उम्र का जाना है ........कि
''अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें।
जिस तरह सूखे हुए फूल , किताबों में मिलें।''अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें।
अब न वो हैं, न तू है , न वो माज़ी है 'फ़राज़ '
जैसे दो शख्स तमन्ना के , सराबों में मिलें"।
Wednesday, January 7, 2009
uttarakhand(history)
In ancient times area now known as Uttarakhand was the place of 'hrishi, muni & yogis'for their yoga,dhyan (meditation)& tapasya(ascetic practices).The place has been described as 'Kedarkhand',in ancient Hindu literature the several shastras.
Modern history tells us that the requirement for formation of a separate Himalayan state for development of hill areas and conservation of unique culture and heritage was felt even prior to independence of India.
Nehru' way back in 1938 (5-6th may ) accepted this concept of Himalayan state Uttarakhand.Comrade P.C.JOshi was first to raise demand for Uttarakhand as separate union territory in 1952.The demand turned to an agitation in 1979 with formation of 'Uttarakhand Kranti Dal'
Friday, January 2, 2009
Samarath ko nahi dosh gosain
Thursday, January 1, 2009
safdar hashmi,The 'hallabol' man
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