एक अदद
बड़ी उम्र का
आइना चाहिए मुझको।
कि मैं,
सफर में दूर
निकल तो आया हूँ
लेकिन....
इक चेहरा मेरा
ज़िद कर के
कहीं ठहर गया है,
गुजश्ता उम्र के
किसी पडाव पर
बस एक बार मुझे
उस कमबख्त के
पास जाना है ,
कहूँ उसे कि
"चल यार बहुत हुआ...
उधर मैं भी तनहा हूँ इधर तू..."
मगर इस
उम्रे-नामुराद ने
ये गुंजाइश भी
कहाँ छोड़ी है ?
...ये तमाम
पिछले आईने
तोड़ कर
बढ़ा करती है
कोई कहाँ से लाये
एक अदद
बड़ी उम्र का आइना ...?
बड़ी उम्र का
आइना चाहिए मुझको।
कि मैं,
सफर में दूर
निकल तो आया हूँ
लेकिन....
इक चेहरा मेरा
ज़िद कर के
कहीं ठहर गया है,
गुजश्ता उम्र के
किसी पडाव पर
बस एक बार मुझे
उस कमबख्त के
पास जाना है ,
कहूँ उसे कि
"चल यार बहुत हुआ...
उधर मैं भी तनहा हूँ इधर तू..."
मगर इस
उम्रे-नामुराद ने
ये गुंजाइश भी
कहाँ छोड़ी है ?
...ये तमाम
पिछले आईने
तोड़ कर
बढ़ा करती है
कोई कहाँ से लाये
एक अदद
बड़ी उम्र का आइना ...?