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Saturday, November 14, 2009

मुशायरा -ज़रा नाज़ुक शेर है ..!

ख़वातीनो हज़रात साइबर मुशायरे में आपका इस्तकबाल ...बड़ी मसर्रत की बात है कि आज की शाम हमारे साथ शायरी की वो शख्सियतें ,वो नाम हैं जिनका तार्रुफ़ यही है कि वो ख़ुद अपने दौर का तार्रुफ़ हैं..तो नए -पुराने शायर का दावत-ए-सुख़न के लिए ख़याल रखने से आज़ादी हासिल करके सबसे पहले ..कुंवर 'बेचैन 'साहब के इस शेर के साथ कि...
अधर चुप हैं मगर मन में कोई संवाद जारी है
मैं ख़ुद में लीन हूँ लेकिन किसी की याद जारी है
आवाज़ दे रहा हूँ जनाब 'दुष्यंत कुमार'
धूप ये अठखेलियाँ हर रोज़ करती है।
एक छाया सीढियाँ चढ़ती उतरती है ॥
मैं तुम्हें छूकर ज़रा सा छेड़ देता हूँ ,

और गीली पांखुरी से ओस झरती है ॥

अगले शायर को दावत--सुखन से पहले सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि
रेख्ता के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'गा़लिब'. .
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था॥
जनाब मीर तकी़ 'मीर'...
ज़ख्मों- प -ज़ख्म झेले ,दाग़ॉं - प- दाग़ खाए।
यक क़तर खू़ने-दिल ने,क्या-क्या सितम उठाये
बढ़तीं नहीं पलक से , ता हम तलक भी पहुंचें।

फिरतीं हैं वो निगाहें ,पलकों के साये-साये ॥
शैलेश मटियानी के इस कलाम के साथ मैं स्वागत करता हूँ जनाब अहमद 'फ़राज़' का कि
गीत की गुर्जरी ,प्राण के खेत में ,दर्द के बीज कुछ, इस तरह बो गई
साँस जो भी उगी, चोट खायी हुई ,ये जिंदगी क्या हुई, मौत ही हो गई
जनाब अहमद 'फ़राज़'...
हिज्रे जानां की घड़ी अच्छी लगी । अबके तन्हाई बड़ी अच्छी लगी
एक तनहा फाख्ता उड़ती हुई ।
एक हिरन की चौकडी अच्छी लगी ॥
जिंदगी कि घुप अँधेरी रात में
याद की इक फुलझडी अच्छी लगी ॥
एक शहजादी मगर दिल की फ़कीर
उस को मेरी झोपडी अच्छी लगी ॥
अगली गुजारिश जिनसे करने जा रहा हूँ वो पहले मेरी शिकायत सुन लें
इन्हें तो सब से पहले बज्म में मौजूद होना था
ये दुनिया क्या कहेगी शमा परवानों के बाद आई
जी हाँ 'परवीन शाकिर '...
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए ।
मौसम के हाथ भीग के शफ्फाक हो गए॥
लहरा रही है बर्फ की चादर हटा के घास
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए॥
जुगनू को दिन के वक्त आजमाने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए॥
और अगले शायर हैं.......

फेमिनिस्ट

अनुभव अगर कहूँ ,
तुम छीन लोगे मुझसे
'फेमिनिस्ट'
कहलाने की खुराक !
चलो मैं इसे
शोध कहता हूँ
मैंने तमाम
साहित्य
खंगाला है,
इतिहास की
कब्र
खोदी है
और यकीनन
मैं नहीं कहता,
आंकडे बोलते हैं
औरत में आदमी का हर एक फन है
आदमी की टक्कर का काइयांपन है
उठो नहीं...भड़को मत ...
ये शोधपत्र ले जाओ
अपने 'तंत्र ' को समझाओ
औरत से डरने की
ज़रूरत
नहीं है,
औरत भी अपनी है/
पराई
नहीं है...

Wednesday, November 11, 2009

उठो !

साथियों उठो!
तुम नहीं जानते
क्या हुआ है?
तुम पथरीले खेतों में
सोना उगाने की
कोशिश करते हो..
और लोहा समझ कर
सरहद पर भेजते हो
अपने बच्चे....
तुम नहीं जानते
बच्चे लोहे के नहीं होते...
वे सरहद पर लोहा खाएँगे।
वे शहीद नहीं
सियासत के हाथों पिटे हुए
मोहरे होंगे...
और कल सरकारी दफ्तरों में
तुम्हारी बदहवाश बहुएँ
किस 'एंगल और फ्रेम' से
देखी जायेंगी ?
तुम नहीं जानते!
इसलिए उठो !
अपने पथरीले खेतों में
अब सोना नहीं...
लोहा उगाओ..!

(published)

Monday, November 9, 2009

शैतान की सीख

उत्तर जानते हुए भी चुप रहोगे तो शैतान तुम्हारा सर फोड़ देगा ...और अगर नहीं जानते तो अपना सर फोड़ेगा ... भला और बुरा दो भाई थे (एक समय की बात है) वे बिना माँ- बाप के ही पैदा हुए और दुनिया में मौजूद रहे (ऐसा कैसे सम्भव हुआ कोई नहीं जनता) खैर जो होता आया है हुआ ,समय गुजरा और वे दोनों किशोरावस्था को प्राप्त हुए बात चूँकि पुरानी है इसलिए धोखे में मत आइये 'फिल्मी फार्मूला' तब भी मौजूद था जी हाँ ! दोनों को एक ही सुंदरी 'जनता कुमारी' से प्रेम हुआ।मरियल शरीर लेकिन धूर्त बुद्धि वाले 'भले' को जल्द ही महसूस हो गया कि जनता कुमारी' का ज़्यादा ध्यान मजबूत काठी वाले शर्मीले 'बुरे' की तरफ़ है ज़ाहिर है ये उसे नागवार गुज़रा ,सोउसने खूब सोच कर आखिरकार 'जनता कुमारी'को धीरे - 'बुरे' की ताक़त से डराना शुरू किया उसने बताया कि 'बुरा' कितना भयानक हो सकता था और कितना अधिक नुकसान पहुँचा सकता था। जितना अधिक वह 'बुरे' का कथित भय बढाता रहा,उतना ही 'सुंदरी जनता' उसके करीब आती गई ।प्यार करने लगी और अंततः पूजने लगी आज भी जब 'भले' को कुछ असुरक्षित सा लगता है तो वो 'बुरे' से खतरे के बारे में चिल्लाने लगता है ,'जनता कुमारी' तुंरत 'भले' की पूजा में जुट जाती है।
प्रश्न ():-भला और बुरा नाम के दो भाई कहाँ रहते थे ?
प्रश्न():-क्या इस कहानी से भी कोई शिक्षा मिलती है ?
प्रश्न ():-'भगवान' और 'शैतान'के बारे में आप क्या जानते हैं ?