यकीनन गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में जहाँ एक ओर आबादी के अनुपात में रोज़गार के अवसर ना बढ़ने से कैरियर की जद्दोजहद , महंगाई , विवाह समारोहों के अतिशय खर्चीलेपन आदि के कारन विवाह की औसत आयु बढ़ गयी है, वहीँ दूसरी ओर बाज़ार की संस्कृति खोखला खुलापन परोस रही है । यही वो कारन हैं जो समाज में यौन कुंठा के स्तर में बेतहाशा वृद्धि कर रहे हैं जिससे छेड़छाड़ से बलात्कार तक और समलैंगिकता से लेकर पशुगमन ,और बाल- शोषण तक गंभीर यौन विकृतियाँ और अपराधों का ग्राफ तेज़ी से बढ़ रहा है ।
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व्यक्तिवादी नज़रिए से 'लिव-इन रिलेशनशिप ' का चेहरा मानवीय और प्रगतिशील है ... लेकिन सामाजिक दृष्टि से यह परिवार नामक संस्था के विध्वंश का बिगुल है , जो अपने आप में आने वाली पीढ़ियों को गंभीर सामाजिक संकट में धकेलना है ।
दूसरा विकल्प 'लीगलाइज्ड पेड सेक्स' या कानूनी मान्यता प्राप्त वेश्यालय हैं । हाँ यह व्यवस्था स्त्री पुरुष दोनों केलिए हो (अफ़सोस वेश्या शब्द का पुल्लिंग नहीं होता)... क्योंकि स्त्री भी समान रूप से यौन अनुपलब्धता की शिकार होती ही है।
हमारे सामने दोनों ही विकल्प सामाजिक मूल्य और तथाकथित नैतिकता का विकराल संकट खड़ा करते हैं ...
ऐसी स्थिति है तोह गौर कीजिये 'कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी' । हमारे पास कुछ संभावित विकल्प और भी हैं ...
१: विवाह प्रक्रिया को आसान , लचीला और सस्ता बनाएं ... जाति /धर्म /गोत्र इत्यादि को इस से दूर रखें
२: 'मादा शिशु ' के प्रति सहिष्णु बनें कन्या भ्रूण-हत्या रोकें.
३: यौन सम्बन्ध और यौन समस्याएँ यथार्थ हैं , इन्हें लेकर हाय-तौबा के बजाय यौन शिक्षा को बढ़ावा दें।