ख़वातीनो हज़रात साइबर मुशायरे में आपका इस्तकबाल ...बड़ी मसर्रत की बात है कि आज की शाम हमारे साथ शायरी की वो शख्सियतें ,वो नाम हैं जिनका तार्रुफ़ यही है कि वो ख़ुद अपने दौर का तार्रुफ़ हैं..तो नए -पुराने शायर का दावत-ए-सुख़न के लिए ख़याल रखने से आज़ादी हासिल करके सबसे पहले ..कुंवर 'बेचैन 'साहब के इस शेर के साथ कि...
अधर चुप हैं मगर मन में कोई संवाद जारी है ।
मैं ख़ुद में लीन हूँ लेकिन किसी की याद जारी है॥
आवाज़ दे रहा हूँ जनाब 'दुष्यंत कुमार' ॥
धूप ये अठखेलियाँ हर रोज़ करती है।
एक छाया सीढियाँ चढ़ती उतरती है ॥
मैं तुम्हें छूकर ज़रा सा छेड़ देता हूँ ,
और गीली पांखुरी से ओस झरती है ॥
अगले शायर को दावत-ए-सुखन से पहले सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि
रेख्ता के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'गा़लिब'. .
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था॥
जनाब मीर तकी़ 'मीर'...
ज़ख्मों- प -ज़ख्म झेले ,दाग़ॉं - प- दाग़ खाए।
यक क़तर खू़ने-दिल ने,क्या-क्या सितम उठाये॥
बढ़तीं नहीं पलक से , ता हम तलक भी पहुंचें।
फिरतीं हैं वो निगाहें ,पलकों के साये-साये ॥
शैलेश मटियानी के इस कलाम के साथ मैं स्वागत करता हूँ जनाब अहमद 'फ़राज़' का कि
गीत की गुर्जरी ,प्राण के खेत में ,दर्द के बीज कुछ, इस तरह बो गई ।
साँस जो भी उगी, चोट खायी हुई ,ये जिंदगी क्या हुई, मौत ही हो गई ॥
जनाब अहमद 'फ़राज़'...
हिज्रे जानां की घड़ी अच्छी लगी । अबके तन्हाई बड़ी अच्छी लगी ॥
एक तनहा फाख्ता उड़ती हुई ।
एक हिरन की चौकडी अच्छी लगी ॥
जिंदगी कि घुप अँधेरी रात में ।
याद की इक फुलझडी अच्छी लगी ॥
एक शहजादी मगर दिल की फ़कीर ।
उस को मेरी झोपडी अच्छी लगी ॥
अगली गुजारिश जिनसे करने जा रहा हूँ वो पहले मेरी शिकायत सुन लें
इन्हें तो सब से पहले बज्म में मौजूद होना था ।
ये दुनिया क्या कहेगी शमा परवानों के बाद आई।
जी हाँ 'परवीन शाकिर '...
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए ।
मौसम के हाथ भीग के शफ्फाक हो गए॥
लहरा रही है बर्फ की चादर हटा के घास ।
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए॥
जुगनू को दिन के वक्त आजमाने की ज़िद करें।
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए॥
और अगले शायर हैं.......
अधर चुप हैं मगर मन में कोई संवाद जारी है ।
मैं ख़ुद में लीन हूँ लेकिन किसी की याद जारी है॥
आवाज़ दे रहा हूँ जनाब 'दुष्यंत कुमार' ॥
धूप ये अठखेलियाँ हर रोज़ करती है।
एक छाया सीढियाँ चढ़ती उतरती है ॥
मैं तुम्हें छूकर ज़रा सा छेड़ देता हूँ ,
और गीली पांखुरी से ओस झरती है ॥
अगले शायर को दावत-ए-सुखन से पहले सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि
रेख्ता के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'गा़लिब'. .
कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था॥
जनाब मीर तकी़ 'मीर'...
ज़ख्मों- प -ज़ख्म झेले ,दाग़ॉं - प- दाग़ खाए।
यक क़तर खू़ने-दिल ने,क्या-क्या सितम उठाये॥
बढ़तीं नहीं पलक से , ता हम तलक भी पहुंचें।
फिरतीं हैं वो निगाहें ,पलकों के साये-साये ॥
शैलेश मटियानी के इस कलाम के साथ मैं स्वागत करता हूँ जनाब अहमद 'फ़राज़' का कि
गीत की गुर्जरी ,प्राण के खेत में ,दर्द के बीज कुछ, इस तरह बो गई ।
साँस जो भी उगी, चोट खायी हुई ,ये जिंदगी क्या हुई, मौत ही हो गई ॥
जनाब अहमद 'फ़राज़'...
हिज्रे जानां की घड़ी अच्छी लगी । अबके तन्हाई बड़ी अच्छी लगी ॥
एक तनहा फाख्ता उड़ती हुई ।
एक हिरन की चौकडी अच्छी लगी ॥
जिंदगी कि घुप अँधेरी रात में ।
याद की इक फुलझडी अच्छी लगी ॥
एक शहजादी मगर दिल की फ़कीर ।
उस को मेरी झोपडी अच्छी लगी ॥
अगली गुजारिश जिनसे करने जा रहा हूँ वो पहले मेरी शिकायत सुन लें
इन्हें तो सब से पहले बज्म में मौजूद होना था ।
ये दुनिया क्या कहेगी शमा परवानों के बाद आई।
जी हाँ 'परवीन शाकिर '...
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए ।
मौसम के हाथ भीग के शफ्फाक हो गए॥
लहरा रही है बर्फ की चादर हटा के घास ।
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गए॥
जुगनू को दिन के वक्त आजमाने की ज़िद करें।
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए॥
और अगले शायर हैं.......
7 comments:
बहुत सही फ़रमाया है .....वाह जी वाह
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बेहतरीन मुशायरा...सब दिग्गजों को ले आये..जारी रहें.
ये सभी माननीय शायर हमारे भी पसंदीदा हैं.
अगले शायर कौन होंगे?
क्या यह कड़ी में जारी है??
अगर इन शायरों की एक पूरी ग़ज़ल पढने को मिलती तो बड़ा आभार होता.
mushayare ka maza to khub liya ja raha hai janaab bahot khub....jaari rakhe...
arsh
durbi jee ki nayee gazalon ka intzaar hai
sonali
शुक्रिया ; आपका 'मुशाइरा ' भी बहुत अच्छा लगा .
वाह वाह! बहुत खूब!!
आपको मुशायरा संचालन की बधाई!!
-सुलभ
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