गाँव शहर हर बस्ती में लाठी का बोलबाला है
पैसेवाले मार रहे हैं मुफलिस मरने वाला है
लाठी का बोलबाला है मुफलिस मरने वाला है
पुलिस के थानों में अय्याशी न्याय के घर में अनदेखी
डी.ऍम .पर भी हुकुम चलाता मंत्री जी का साला है
लाठी का बोलबाला है मुफलिस मरने वाला है
आधी जनता भूख से मरती उधर चाँद के तैय्यारी
धरती सारी बाँट चुके हैं चाँद भी बाँटने वाला है
लाठी का बोलबाला है मुफलिस मरने वाला है
`दुर्बी` उसने खर्च किये हैं पैसे बहुत चुनाव में
पाँच साल तक देखना दोनों हाथों लूटने वाला है
लाठी का बोलबाला है मुफलिस मरने वाला है
-- मनोज दुर्बी
Sunday, December 26, 2010
Thursday, July 22, 2010
लिव इन / वेश्यालय : दीवार में खिड़की तो हो ...
नदी अपना रास्ता तलाश लेती है , पतीले का उबाल ढक्कन लगाने से दबता नहीं बढ़ता है...'लिव-इन रिलेशनशिप ' या फिर 'लीगलाइज्ड पेड सेक्स'...? इनसे बेहतर विकल्प भी मौजूदहैं ...!
यकीनन गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में जहाँ एक ओर आबादी के अनुपात में रोज़गार के अवसर ना बढ़ने से कैरियर की जद्दोजहद , महंगाई , विवाह समारोहों के अतिशय खर्चीलेपन आदि के कारन विवाह की औसत आयु बढ़ गयी है, वहीँ दूसरी ओर बाज़ार की संस्कृति खोखला खुलापन परोस रही है । यही वो कारन हैं जो समाज में यौन कुंठा के स्तर में बेतहाशा वृद्धि कर रहे हैं जिससे छेड़छाड़ से बलात्कार तक और समलैंगिकता से लेकर पशुगमन ,और बाल- शोषण तक गंभीर यौन विकृतियाँ और अपराधों का ग्राफ तेज़ी से बढ़ रहा है ।एक और विकराल समस्या है कि यूँ तोह हम विकासशील से विकसित देश में तेज़ी से तब्दील होने को ले कर मुतमइन नज़र आते हैं , लेकिन आज भी समाज में 'नर शिशु' के महातम्य की मानसिकता और कन्या भ्रूण हत्या के चलते लिंगानुपात विकसित देशों की तुलना में काफी कम है , हरियाणा आदि राज्यों में तो शोचनीय स्तर तक...!नदी अपना रास्ता तलाश लेती है , पतीले का उबाल ढक्कन लगाने से दबता नहीं बढ़ता है... प्रथम दृष्टया सामने दो विकल्प हैं ....पहला यौन तृप्ति का आसान ,उत्तरदायित्वहीन और तुलनात्मक रूप से सभ्य तरीका खोज निकाला गया है जिसे हम 'लिव-इन' कहते हैं ।
व्यक्तिवादी नज़रिए से 'लिव-इन रिलेशनशिप ' का चेहरा मानवीय और प्रगतिशील है ... लेकिन सामाजिक दृष्टि से यह परिवार नामक संस्था के विध्वंश का बिगुल है , जो अपने आप में आने वाली पीढ़ियों को गंभीर सामाजिक संकट में धकेलना है ।
दूसरा विकल्प 'लीगलाइज्ड पेड सेक्स' या कानूनी मान्यता प्राप्त वेश्यालय हैं । हाँ यह व्यवस्था स्त्री पुरुष दोनों केलिए हो (अफ़सोस वेश्या शब्द का पुल्लिंग नहीं होता)... क्योंकि स्त्री भी समान रूप से यौन अनुपलब्धता की शिकार होती ही है।
हमारे सामने दोनों ही विकल्प सामाजिक मूल्य और तथाकथित नैतिकता का विकराल संकट खड़ा करते हैं ...
ऐसी स्थिति है तोह गौर कीजिये 'कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी' । हमारे पास कुछ संभावित विकल्प और भी हैं ...
१: विवाह प्रक्रिया को आसान , लचीला और सस्ता बनाएं ... जाति /धर्म /गोत्र इत्यादि को इस से दूर रखें
२: 'मादा शिशु ' के प्रति सहिष्णु बनें कन्या भ्रूण-हत्या रोकें.
३: यौन सम्बन्ध और यौन समस्याएँ यथार्थ हैं , इन्हें लेकर हाय-तौबा के बजाय यौन शिक्षा को बढ़ावा दें।
यकीनन गलाकाट प्रतियोगिता के इस युग में जहाँ एक ओर आबादी के अनुपात में रोज़गार के अवसर ना बढ़ने से कैरियर की जद्दोजहद , महंगाई , विवाह समारोहों के अतिशय खर्चीलेपन आदि के कारन विवाह की औसत आयु बढ़ गयी है, वहीँ दूसरी ओर बाज़ार की संस्कृति खोखला खुलापन परोस रही है । यही वो कारन हैं जो समाज में यौन कुंठा के स्तर में बेतहाशा वृद्धि कर रहे हैं जिससे छेड़छाड़ से बलात्कार तक और समलैंगिकता से लेकर पशुगमन ,और बाल- शोषण तक गंभीर यौन विकृतियाँ और अपराधों का ग्राफ तेज़ी से बढ़ रहा है ।एक और विकराल समस्या है कि यूँ तोह हम विकासशील से विकसित देश में तेज़ी से तब्दील होने को ले कर मुतमइन नज़र आते हैं , लेकिन आज भी समाज में 'नर शिशु' के महातम्य की मानसिकता और कन्या भ्रूण हत्या के चलते लिंगानुपात विकसित देशों की तुलना में काफी कम है , हरियाणा आदि राज्यों में तो शोचनीय स्तर तक...!नदी अपना रास्ता तलाश लेती है , पतीले का उबाल ढक्कन लगाने से दबता नहीं बढ़ता है... प्रथम दृष्टया सामने दो विकल्प हैं ....पहला यौन तृप्ति का आसान ,उत्तरदायित्वहीन और तुलनात्मक रूप से सभ्य तरीका खोज निकाला गया है जिसे हम 'लिव-इन' कहते हैं ।
व्यक्तिवादी नज़रिए से 'लिव-इन रिलेशनशिप ' का चेहरा मानवीय और प्रगतिशील है ... लेकिन सामाजिक दृष्टि से यह परिवार नामक संस्था के विध्वंश का बिगुल है , जो अपने आप में आने वाली पीढ़ियों को गंभीर सामाजिक संकट में धकेलना है ।
दूसरा विकल्प 'लीगलाइज्ड पेड सेक्स' या कानूनी मान्यता प्राप्त वेश्यालय हैं । हाँ यह व्यवस्था स्त्री पुरुष दोनों केलिए हो (अफ़सोस वेश्या शब्द का पुल्लिंग नहीं होता)... क्योंकि स्त्री भी समान रूप से यौन अनुपलब्धता की शिकार होती ही है।
हमारे सामने दोनों ही विकल्प सामाजिक मूल्य और तथाकथित नैतिकता का विकराल संकट खड़ा करते हैं ...
ऐसी स्थिति है तोह गौर कीजिये 'कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जायेगी' । हमारे पास कुछ संभावित विकल्प और भी हैं ...
१: विवाह प्रक्रिया को आसान , लचीला और सस्ता बनाएं ... जाति /धर्म /गोत्र इत्यादि को इस से दूर रखें
२: 'मादा शिशु ' के प्रति सहिष्णु बनें कन्या भ्रूण-हत्या रोकें.
३: यौन सम्बन्ध और यौन समस्याएँ यथार्थ हैं , इन्हें लेकर हाय-तौबा के बजाय यौन शिक्षा को बढ़ावा दें।
Monday, May 10, 2010
त्रिवेणी ग़ज़ल
फिर कोई खलिश मुझे, जागती है रात भर ।
तीरगी* में रास्ता, ढ़ूंढ़ती है रात भर ।
तमन्ना दीवारो - दर , पीटती है रात भर॥
ज़ख्म से बहता हुआ , खून क्यों खामोश हो ।
आरज़ू दिल की बहुत , बोलती है रात भर ।
हर तरफ खला में पर तौलती है रात ॥
ये फितूर है मेरे , तालि - ए - बेदार** का।
तेरी चाप की सदा , गूंजती है रात भर।
कान में सरगम शहद , घोलती है रात भर॥
आरज़ू में डूब कर,घुल रहे हैं नक्शो-नक्श।
शै कोई तस्वीर सी , भीगती है रात भर ।
हसरते जां आँख में , तैरती है रात भर॥
चुन रहा हूँ सुब्हो मैं , मोतियों से हर्फो-हर्फ़।
एक दरिया सी ग़ज़ल , फैलती है रात भर।
तुम कहाँ हो ?मैं कहाँ?पूछती है रात भर॥
*अन्धकार , ** सौभाग्य
तीरगी* में रास्ता, ढ़ूंढ़ती है रात भर ।
तमन्ना दीवारो - दर , पीटती है रात भर॥
ज़ख्म से बहता हुआ , खून क्यों खामोश हो ।
आरज़ू दिल की बहुत , बोलती है रात भर ।
हर तरफ खला में पर तौलती है रात ॥
ये फितूर है मेरे , तालि - ए - बेदार** का।
तेरी चाप की सदा , गूंजती है रात भर।
कान में सरगम शहद , घोलती है रात भर॥
आरज़ू में डूब कर,घुल रहे हैं नक्शो-नक्श।
शै कोई तस्वीर सी , भीगती है रात भर ।
हसरते जां आँख में , तैरती है रात भर॥
चुन रहा हूँ सुब्हो मैं , मोतियों से हर्फो-हर्फ़।
एक दरिया सी ग़ज़ल , फैलती है रात भर।
तुम कहाँ हो ?मैं कहाँ?पूछती है रात भर॥
(दीपक तिरुवा )
*अन्धकार , ** सौभाग्य
Wednesday, March 31, 2010
उस मोड़ पर ...
मेरी नज़्म 'उस मोड़ पर' पेशे नज़र है
Tuesday, March 16, 2010
Mr.good & Mr.bad
There were two brothers named 'good' and 'bad'(obviously once upon a time).They born and existed without mother and father (no body knows how it is possible but they did).
Whatsoever ,as always happens, happened in this case also, they grew teens and without any excuse of old times, there is a filmy twist in story. Yah… they both fell in love with same young lady ‘miss public’. Lean & thin and cunning ‘good’ realized the lady was more interested in built strong and shy ‘bad’.
So after plenty of restless thinking he started frightening her of Mr. bad’s power, convincing her about the extent to which ‘bad’ could have been dangerous and possible amount of harm cause. More he terrorized closer she came. Soon she started loving and finally worshiped him.
Even today, Mr.good whenever feels something like insecurity; he just starts shouting about said ‘danger’ and poor ‘miss public’ gets into more vigorous prays and worships.
Que.1:-Where were two brothers named 'good' and 'bad' once upon a time ?
Que.2:-Is there any moral even in this story ?
Que.3:- What do you know about god and devil ?
Whatsoever ,as always happens, happened in this case also, they grew teens and without any excuse of old times, there is a filmy twist in story. Yah… they both fell in love with same young lady ‘miss public’. Lean & thin and cunning ‘good’ realized the lady was more interested in built strong and shy ‘bad’.
So after plenty of restless thinking he started frightening her of Mr. bad’s power, convincing her about the extent to which ‘bad’ could have been dangerous and possible amount of harm cause. More he terrorized closer she came. Soon she started loving and finally worshiped him.
Even today, Mr.good whenever feels something like insecurity; he just starts shouting about said ‘danger’ and poor ‘miss public’ gets into more vigorous prays and worships.
Que.1:-Where were two brothers named 'good' and 'bad' once upon a time ?
Que.2:-Is there any moral even in this story ?
Que.3:- What do you know about god and devil ?
Friday, March 12, 2010
orkut ब्लॉग की sidebar में
Subscribe to:
Posts (Atom)