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Monday, July 25, 2011

ग़ज़ल है नाम जिसका शायरी में


*ग़ज़ल अपनी उम्र के तक़रीबन हज़ार साल पूरे कर चुकी है.
*अमीर खुसरो इसके पहले शायर जाने जाते हैं.
*ग़ज़ल शब्द की उत्पत्ति गिज़ाल या गज़ाला से हुई है..जिसके मानी 'हिरन' या हिरनी से है, तो हिरनी के नयनों सी इस हसीना का शुरूआती सफर ऐसा रहा के असल में महबूब को संबोधित करने के लिए उपयोग में आने वाली विधा ...समझा जाने लगा.
*दरअसल शायरों की बहुत सी पीढियां ग़ज़ल में हुस्नो-इश्क, वफ़ा-ज़फ़ा, लबो-रुखसारो-ज़ुल्फ़,शराब-शबाब को ही मौजु-ए-सुखन (लेखन की विषय वस्तु) बनाए रहीं.
* कालांतर में ग़ज़ल जवान होकर ज़्यादा हसीन हुई जब जीवन के तमाम दूसरे पहलू जनजीवन की कठिनाइयाँ इसका विषय बनी,('अहमद फ़राज़' के शब्दों में 'ग़म ए दुनिया' भी 'ग़म ए यार' में शामिल हुआ).और 'व्यंग्य' से लेकर दर्शन तक इसकी शैली में शामिल हुए.
*ग़ज़ल में जनपक्षधर आवाज़ की शुरुआत हमें 'मीर तकी मीर' के कलाम में मिलती है,और 'दुष्यंत' तक आते आते ये आवाज़ बहुत बुलंद हो गयी है.
*ग़ज़ल में 'उस्ताद' परंपरा रही है, नए शायर पुरानों से अपने कलाम पर 'इस्लाह' लिया करते थे 'ग़ालिब' पहले ऐसे शायर थे जो खुद अपने उस्ताद हुए.

*ग़ज़ल का पहला शेर यानी मतला जिसके दोनों मिसरों में तुकबंदी हो.दोनों मिसरे महबूब के लबों की तरह बराबर संतुलन में हों यानी 'मीटर' में हों
बोल रहा था कल वो मुझसे,हाथ में मेरा हाथ लिए,
'चलते रहेंगे दुःख सुख के हम,सारे मौसम साथ लिए'..
*इसमें 'हाथ' और 'साथ' काफिया है
(बाकी शेरों के लिए 'काफिया' सौगात, बरसात,नग्मात इत्यादि )
* 'लिए' जिस पर मतले के दोनों मिसरे ख़त्म होते हैं
और जो काफिये के बाद आता है(सौगात 'लिए', बरसात 'लिए',नग्मात 'लिए' ) ये 'रदीफ़' है.
*ग़ज़ल में एक से ज्यादा मतले हो सकते हैं. ग़ज़ल के अगले शेरों में एक मिसरा छोड़ कर 'रदीफ़ काफिया' आता है.

उसने अपनी झोली से कल प्यार के हमको फूल दिए.
लौट आये हैं दामन भर के उसकी ये सौगात लिए.

*ग़ज़ल के हर शेर के सब मिसरे बराबर मात्रा और बराबर मात्रा के बाद विराम रखते हैं जिसे ग़ज़ल का 'बहर' कहते हैं...इसी बहर के कारन ग़ज़ल में rhythm आती है
* ग़ज़ल का आखरी शेर जिसमे शायर का नाम आये
'ग़ालिब' छुटी शराब पर अब भी कभी कभी
पीता हूँ ,रोज़े अब्रो शबे माहताब में.
ग़ज़ल का 'मक़ता' कहलाता है.
*मेरे ख़याल में ग़ज़ल साहित्य की सबसे परिष्कृत विधा है.आप लिख-लिख कर पोथियाँ भर सकते हैं या कह सकते हैं बस एक शेर. इसका हरेक शेर अपने आप में मोती सा सुन्दर और पूर्ण होता है, और आपस में गुंथकर ये मोती ग़ज़ल की खूबसूरत माला बनाते हैं. कलात्मक, प...रिष्कृत होने के साथ ही कमाल का सम्प्रेषण और सुग्राहयता ने इसे एक प्रचलित और मशहूर विधा बनाया है..इसीलिए आज ये फ़क़त उर्दू के आसमान का चाँद नहीं है ..बल्कि हिंदी,पंजाबी,मराठी,से लेकर कुमाउनी गढ़वाली भाषाओँ/बोलियों तक इसकी चांदनी फ़ैल गयी है.

3 comments:

Anonymous said...

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Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति|
आप को दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएँ|

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

NICE.
--
Happy Dushara.
VIJAYA-DASHMI KEE SHUBHKAMNAYEN.
--
MOBILE SE TIPPANI DE RAHA HU.
ISLIYE ROMAN ME COMMENT DE RAHA HU.
Net nahi chal raha hai.