सुर्ख सुबह शाम सुहानी चाहिए ।
जिंदगी भर खींचा-तानी चाहिए॥
काट कर पर्वत भगीरथ की तरह
काम की गंगा बहानी चाहिए ॥
कल जहाँ रुकते थे प्यासे काफिले
अब उसी दरिया को पानी चाहिए॥
सींच डाले जो ज़मीं को खून से ,
इस धरा को वो जवानी चाहिए ॥
मंदिरों में क़ैद ईश्वर को 'मनोज'
ख़ुद मदद अब आसमानी चाहिए॥
(मनोज दुर्बी)
Wednesday, April 29, 2009
Tuesday, April 7, 2009
गहरे-हल्के,कितने सदमे
अपने सबसे अच्छे नगमे, तेरे लिए मैंने लिखे ।
आँख के पानी पे सपने, तेरे लिए मैंने लिखे ।
रात दिन मेरे साथ चलने की ना जिद कर जिंदगी
राहे -वफ़ा के आईने , तेरे लिए मैंने लिखे ।
उसे फ़िक्र हो ऐसा न था,लेकिन मुझे कहता रहा
गहरे-हल्के,कितने सदमे तेरे लिए मैंने लिखे।
मैं सितारे तोड़ के दूँ तुझे,ये मेरा अहद नहीं मगर
रेत पर अंगुली से झरने ,तेरे लिए मैंने लिखे।
(दीपक तिरुवा)
आँख के पानी पे सपने, तेरे लिए मैंने लिखे ।
रात दिन मेरे साथ चलने की ना जिद कर जिंदगी
राहे -वफ़ा के आईने , तेरे लिए मैंने लिखे ।
उसे फ़िक्र हो ऐसा न था,लेकिन मुझे कहता रहा
गहरे-हल्के,कितने सदमे तेरे लिए मैंने लिखे।
मैं सितारे तोड़ के दूँ तुझे,ये मेरा अहद नहीं मगर
रेत पर अंगुली से झरने ,तेरे लिए मैंने लिखे।
(दीपक तिरुवा)
Friday, April 3, 2009
ज़िन्दगी-ज़िन्दगी !(अखंड)
मैं मरना चाहता था ,
मैंने देखे मौत ,दुःख, निराशा
पस्तहिम्मत ,मतलब परस्त लोग
ज़िन्दगी समझौतों में जीते लोग,
बिखरी ज़िन्दगी ,
सबकुछ जीवन विहीन.....
मैं अब जीना चाहता हूँ
अनंत समय तक
मैंने देखे जीने को कुलबुलाते लोग
ज़िन्दगी के पहलू ,दुनिया की सुन्दरता
बच्चों के हाथों की कोमलता।
महसूस किया मैंने
हर इन्सान में छुपी संघर्ष की अदम्य इच्छा को
सच ,अब मैं बिल्कुल मरना नहीं चाहता
मौत अब तू मेरे क़रीब आ
मैं तेरे चेहरे पर जीवन के
गीत लिखना चाहता हूँ।
मैंने देखे मौत ,दुःख, निराशा
पस्तहिम्मत ,मतलब परस्त लोग
ज़िन्दगी समझौतों में जीते लोग,
बिखरी ज़िन्दगी ,
सबकुछ जीवन विहीन.....
मैं अब जीना चाहता हूँ
अनंत समय तक
मैंने देखे जीने को कुलबुलाते लोग
ज़िन्दगी के पहलू ,दुनिया की सुन्दरता
बच्चों के हाथों की कोमलता।
महसूस किया मैंने
हर इन्सान में छुपी संघर्ष की अदम्य इच्छा को
सच ,अब मैं बिल्कुल मरना नहीं चाहता
मौत अब तू मेरे क़रीब आ
मैं तेरे चेहरे पर जीवन के
गीत लिखना चाहता हूँ।
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