भुला दो सब अज़ाबो-ग़म ,नयी दुनिया बसाने को।
जड़ें पिछली हटाते हैं , नये दरख्त लगाने को ॥
वहीं हम दिल लगाते हैं ,जहाँ अपना सुकूं देखें।
फिर इसको इश्क कहते हैं,ज़माने में दिखाने को॥
तुम इक उम्मीद की तीली,हमेशा साथ में रखना।
अँधेरा एक मौका है ,कोई दिया जलाने को॥
तबीयत बुझते-बुझते भी, मेरी रंगीन हो बैठी।
किसी ने फूल बरसाए ,सितम का रंग छुपाने को॥
पतझड़ ,जाड़ा ,गर्मी हो ,बारिश हो या गुल रुत हो।
सभी मौसम परीशां हैं,हुनर अपना दिखाने को॥
अगर वो बेवफ़ा हो कर,मुझे भुलाना चाहेगा।
उसे मैं भूल जाऊँगा ,वफ़ा अपनी निभाने को॥
(दीपक तिरुवा)
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Thursday, May 7, 2009
Wednesday, April 29, 2009
अब उसी दरिया को पानी चाहिए
सुर्ख सुबह शाम सुहानी चाहिए ।
जिंदगी भर खींचा-तानी चाहिए॥
काट कर पर्वत भगीरथ की तरह
काम की गंगा बहानी चाहिए ॥
कल जहाँ रुकते थे प्यासे काफिले
अब उसी दरिया को पानी चाहिए॥
सींच डाले जो ज़मीं को खून से ,
इस धरा को वो जवानी चाहिए ॥
मंदिरों में क़ैद ईश्वर को 'मनोज'
ख़ुद मदद अब आसमानी चाहिए॥
(मनोज दुर्बी)
जिंदगी भर खींचा-तानी चाहिए॥
काट कर पर्वत भगीरथ की तरह
काम की गंगा बहानी चाहिए ॥
कल जहाँ रुकते थे प्यासे काफिले
अब उसी दरिया को पानी चाहिए॥
सींच डाले जो ज़मीं को खून से ,
इस धरा को वो जवानी चाहिए ॥
मंदिरों में क़ैद ईश्वर को 'मनोज'
ख़ुद मदद अब आसमानी चाहिए॥
(मनोज दुर्बी)
Tuesday, April 7, 2009
गहरे-हल्के,कितने सदमे
अपने सबसे अच्छे नगमे, तेरे लिए मैंने लिखे ।
आँख के पानी पे सपने, तेरे लिए मैंने लिखे ।
रात दिन मेरे साथ चलने की ना जिद कर जिंदगी
राहे -वफ़ा के आईने , तेरे लिए मैंने लिखे ।
उसे फ़िक्र हो ऐसा न था,लेकिन मुझे कहता रहा
गहरे-हल्के,कितने सदमे तेरे लिए मैंने लिखे।
मैं सितारे तोड़ के दूँ तुझे,ये मेरा अहद नहीं मगर
रेत पर अंगुली से झरने ,तेरे लिए मैंने लिखे।
(दीपक तिरुवा)
आँख के पानी पे सपने, तेरे लिए मैंने लिखे ।
रात दिन मेरे साथ चलने की ना जिद कर जिंदगी
राहे -वफ़ा के आईने , तेरे लिए मैंने लिखे ।
उसे फ़िक्र हो ऐसा न था,लेकिन मुझे कहता रहा
गहरे-हल्के,कितने सदमे तेरे लिए मैंने लिखे।
मैं सितारे तोड़ के दूँ तुझे,ये मेरा अहद नहीं मगर
रेत पर अंगुली से झरने ,तेरे लिए मैंने लिखे।
(दीपक तिरुवा)
Tuesday, March 10, 2009
जम्हूरियत चुनाव की बातें करें/मनोज 'दुर्बी'

जम्हूरियत चुनाव की बातें करें
जातिगत बिखराव की बातें करें
भूख और अभाव की बातें करें
संघर्ष और बदलाव की बातें करें
तोड़ कर दुनिया की सारी सरहदें
इश्क के फैलाव की बातें करें
इस मशीनी जिंदगी में दो घड़ी
छाँव और ठहराव की बातें करें
हर जिस्म हर इक रूह है ज़ख्मी 'मनोज'
किस से अपने घाव की बातें करें।
Friday, March 6, 2009
प्यास दरिया है ...!/दीपक तिरुवा
दर्द भी एक बहाना है , मुस्कुराने का
प्यास दरिया है पानी के डूब जाने का
लहू निगाह में रहता है रात-दिन अपनी
हौसला कौन करे हमको आजमाने का
पुराने इश्क से सीखा है बहुत-कुछ हमने
अब इरादा है मगर दूर तलक जाने का
मैं यहाँ तक की हवाओं का ऐतबार करूं
यकीं बहुत है तुम्हारे भी लौट आने का
फिर से मौसम में आहट है नई बारिश की
जी बहुत होता है ऐसे में गुनगुनाने का
प्यास दरिया है पानी के डूब जाने का
लहू निगाह में रहता है रात-दिन अपनी
हौसला कौन करे हमको आजमाने का
पुराने इश्क से सीखा है बहुत-कुछ हमने
अब इरादा है मगर दूर तलक जाने का
मैं यहाँ तक की हवाओं का ऐतबार करूं
यकीं बहुत है तुम्हारे भी लौट आने का
फिर से मौसम में आहट है नई बारिश की
जी बहुत होता है ऐसे में गुनगुनाने का
Wednesday, March 4, 2009
कोई अफ़सोस न पाला करिये...! /दीपक तिरुवा
कोई अफ़सोस न पाला करिये ।
सारे अरमान निकाला करिये॥
दिल ने क्यों शोर किया है इतना,
घर के बच्चे को सम्हाला करिये॥
कच्ची दीवारें ,सूख जाने दो ।
याद पे ज़ोर न डाला करिये॥
फिर कोई ख्वाब चला आयेगा ,
स्याह रातों में उजाला करिये॥
एक सैलाब लिये बैठा हूँ ।
मुझ पे कंकर न उछाला करिये॥
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