तीरगी* में रास्ता, ढ़ूंढ़ती है रात भर ।
तमन्ना दीवारो - दर , पीटती है रात भर॥
ज़ख्म से बहता हुआ , खून क्यों खामोश हो ।
आरज़ू दिल की बहुत , बोलती है रात भर ।
हर तरफ खला में पर तौलती है रात ॥
ये फितूर है मेरे , तालि - ए - बेदार** का।
तेरी चाप की सदा , गूंजती है रात भर।
कान में सरगम शहद , घोलती है रात भर॥
आरज़ू में डूब कर,घुल रहे हैं नक्शो-नक्श।
शै कोई तस्वीर सी , भीगती है रात भर ।
हसरते जां आँख में , तैरती है रात भर॥
चुन रहा हूँ सुब्हो मैं , मोतियों से हर्फो-हर्फ़।
एक दरिया सी ग़ज़ल , फैलती है रात भर।
तुम कहाँ हो ?मैं कहाँ?पूछती है रात भर॥
(दीपक तिरुवा )
*अन्धकार , ** सौभाग्य
2 comments:
nayaab gazal bahut khoob...
अच्छी गजल.
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