पात्र :
१ : पूतना
२ : माधवी
३ : यशोदा
४ : नन्द
५ : वसुदेव
६ : साध्वी
७ : सुजन
८ : बुजुर्ग / वैद्य / बिठूर / ग्रामीण * ५
९ : सूत्रधार (१+१)
दृश्य क्रम
१ : पूतना विचरण / सूत्रधार
२ : नन्द & वसुदेव
३ : सूत्रधार
४ : नन्द, यशोदा, माधवी
५ : कन्या विसर्जन / सूत्रधार / पूतना विचरण
६ : नन्द, सुजन, यशोदा
७ : ग्रामीण, यशोदा, साध्वी
८ : प्रहरी
९ : नन्द, यशोदा,
१० : साध्वी यशोदा
११ : नन्द , सुजन, यशोदा
१२ : वैद्य
१३ : क्लाईमेक्स
दृश्य : १
( रात में राक्षसी पूत’ना कहती हुई गाँव में घूमती है, भयानक आवाजें, भागते हुए लोग. )
छात्रा : उफ़ ! ये सीन तो बहुत डरावना था टीचर, क्या ये पूतना की कहानी है?
टीचर : नहीं इसे पूतना की कहानी नहीं कह सकते, इसमें यशोदा भी है.
छात्रा : तो यशोदा की कहानी होगी .
टीचर : यशोदा की भी नहीं .
छात्रा : पूतना, यशोदा.... समझी, फिर तो ये ज़रूर कृष्ण की कहानी है .
टीचर : अब तुम ठीक हो, अब तक ये तो तुम्हें सीख लेना चाहिए कि कहानी कभी पूतना या यशोदा की नहीं होती, कहानी हमेशा कृष्ण की ही होती है.
दृश्य : २
नन्द : वसुदेव तुम तो कंस के कारागार में थे ? रात के इस पहर.. इतनी वर्षा में, तुम यहाँ पहुंचे कैसे ? यमुना तो पूरे उफान पर होगी... अरे रे .. ये बालक !
वसुदेव : इसे ईश्वर की लीला ही समझो मित्र नन्द ! विस्तार से कहने का समय नहीं है. आकाशवाणी के अनुसार देवकी और मेरा आठवां पुत्र कंस का वध करेगा इसीलिए कंस ने हम दोनों को कारागार में डाल दिया और एक एक कर हमारी सात संतानों को जन्म लेते ही मार दिया.
नन्द : नृशंस ...
वसुदेव : इस आठवें बालक को मैं किसी तरह बचा के तुम्हारी शरण में लाया हूँ, इसकी रक्षा करो भाई, मेरा वंश बचा लो.
नन्द : तुमने अच्छा किया जो यहाँ चले आये, यहाँ तुम और बालक दोनों सुरक्षित रहोगे.
वसुदेव : नहीं मित्र मुझे लौटना होगा, नहीं तो देवकी के प्राण संकट में पड़ जायेंगे. तुम बस मेरे बालक की रक्षा कर दो .
नन्द : तुम निश्चिन्त हो जाओ मैं तुम्हारी धरोहर की हर तरह से रक्षा करूंगा.
वसुदेव : मुझे जाना चाहिए, विलम्ब उचित नहीं है...मुझे कारावास में न पाकर कंस पता नहीं क्या कर डाले...
नन्द : सुनो वसुदेव ! तुम देवकी के प्रसव की बात कंस से कैसे छुपाओगे, सत्य का पता लगते ही वह तुम दोनों की हत्या कर देगा.
वसुदेव : अब प्राणों की चिंता नहीं है, तुम मेरा वंश तो बचा ही लोगे.
नन्द : मेरे पास एक उपाय है, यशोदा ने एक कन्या को जन्म दिया है, तुम उसे ले जाओ..
वसुदेव : नहीं नहीं कंस उसे मार डालेगा..
नन्द : पुत्र के जीवन के लिए कन्या का मोल कुछ भी नहीं है... मेरी बात मान लो , इससे देवकी और तुम्हारे प्राण भी बच जायेंगे. और आकाशवाणी को झूठा समझ कर कंस तुम्हारे पुत्र की खोज भी नहीं करेगा..
वसुदेव : और यशोदा...
नन्द : यशोदा अब तक प्रसव पीड़ा से अचेत पड़ी है. मैं कन्या को पुत्र से बदल दूंगा, उसे पता भी नहीं चलेगा.
दृश्य -३
छात्रा : ये ठीक नहीं है .. ये बहुत ग़लत हो रहा है, ऐसा नहीं होना चाहिए .
टीचर : सुनो... सुनो .. ये सब अब इतिहास है , इतिहास को बदला नहीं जा सकता उससे केवल सबक लिया जा सकता है.
छात्रा : हाँ .. आज भी कौन से हालात बदले हैं, कन्या भ्रूण हत्या होती ही है, बेटियां मार डाली जाती हैं, दामिनी का बस में बलात्कार होता है, सोनी सोरी के गुप्तांग में पुलिस पत्थर भर देती है... आखिर कब तक टीचर..?
टीचर : शांत हो जाओ, बुरे पर गुस्सा आना ठीक है पर, गुस्से को पाल लेना सीखो, और समझदारी से इसका उपयोग करो समाज को बदलने में , भावुक होकर इसे गंवाओ नहीं ...
छात्रा : हाँ ...! अच्छा यशोदा को होश आने पर क्या हुआ टीचर ?
टीचर : यशोदा का होश ? इसके बारे में ठीक -२ कहना मुश्किल है. सवाल तो ये है कि बच्चों की अदला – बदली के समय क्या यशोदा सचमुच बेहोश थी ?
दृश्य- ४
(यशोदा सोये हुए नन्द के पैर दबाती है और बीच – बीच में कृष्ण को झुला झुलाते हुए गुनगुनाती है. कुछ देर में उसे झपकी आ जाती है)
नन्द : अरे सांझ होने वाली है ..
यशोदा : मेरी भी आँख लग गयी कृष्ण को सुलाते-सुलाते.
नन्द : भरी दोपहर में ? क्या ये स्त्री के विश्राम का समय है ? तुम्हारे कारण मुझे भी विलम्ब हो गया..
यशोदा : रात में भी कहाँ विश्राम होता है, आपके सुपुत्र दिन में सो लेते हैं , और रातभर माता को जागरण करते हैं. आज क्या पुनः कोई सभा है ?
नन्द : बिठूरे की स्त्री ने पुनः कन्या को जन्म दिया है.
यशोदा : माधवी का भी भाग्य...
नन्द : लौटने तक अबेर हो जाएगी, प्रकाश की व्यवस्था कर दो..(प्रस्थान)
माधवी : (नेपथ्य से) यशोदा... ओ नन्दरनियाँ !
यशोदा : कौन माधवी दी ? यहाँ ? रुको आती हूँ ... ये निपूती-निर्जड़ी मेरे कान्हा को डीठ लगाने यहाँ पहुँच गयी. (कृष्ण को छुपाती है)
माधवी : यशोदा ..कहाँ हो बहन ?
यशोदा : आयी ...आयी .. क्या बात है ?
माधवी : मेरी पुत्री की रक्षा करो यशोदा, वे उसे भी मार डालेंगे. मैंने चार कन्याओं को जन्म दिया पर किसी को दूध नहीं पिला सकी, उन्होंने सब को छीन लिया, दूध में डुबो कर मार डाला.
यशोदा : धैर्य रखो माधवी दी ईश्वर तुम्हारी परीक्षा ले रहा होगा.
माधवी : नहीं यशोदा अब मेरे प्राण में धैर्य है नहीं है फिर से संतान जनने की सामर्थ्य भी नहीं है, तुम्हारे नन्द तो गाँव के मुखिया हैं वे कहेंगे तो मेरी पुत्री के प्राण बच जायेंगे.
यशोदा : शांत हो जाओ दी, तुम न माता अनसूया की आराधना किया करो. माता के ही व्रत उपवास से तो हुए हैं मेरे बलदेव और कान्हा...
माधवी : नहीं चाहिए मुझे पुत्र, मेरी पुत्री को ही बचा लो, मैं उसे लेकर कहीं चली जाऊंगी.
यशोदा : ऐसा कहते हैं क्या ? धैर्य रखो माता बड़ी दयालु है, वो तुम्हारी गोद में भी बालक देगी. बालक से ही तो ये लोक परलोक तरते हैं...
नन्द (नेपथ्य से ) मैं बिठूरे के घर जा रहा हूँ यशोदा !
यशोदा : मशाल लेते जाइए ..
माधवी : यशोदा मुखिया जी से कहो इस अत्याचार को रोक लें. यशोदा कहो न .... यशोदा मेरी पुत्री के प्राण बचा लो ... मुखिया जी ... ... (प्रस्थान)
दृश्य – ५
(गाँव के सार्वजनिक स्थान पर)
बुजुर्ग : क्या अब मुखिया नन्द भी विलम्ब से आने लगे हैं .
पात्र : मुखिया की बात तो सुजन ही बता सकता है , क्यों सुजन ? बड़े निकटस्थ हो मुखिया के..
सुजन : लो आ गए मुखिया जी .
बुजुर्ग : कैसे हो मुखिया ? ... नाद को दूध से भर दिया है कि नहीं .
पात्र : जी वो कब का भर दिया गया है .
बुजुर्ग : तो कन्या को लाते क्यों नहीं , विलम्ब कैसा है भाई ?
सुजन : बिठूरे की सटी..., उसने उपद्रव मचा रखा है , वो कन्या को देना ही नहीं चाहती .
नन्द : बिठूर क्या नपुंसक हो गया है ?
( बिठूर - माधवी का प्रवेश )
माधवी : मेरी कन्या को मत मारो ...बिठूर : हटो ( माधवी गिर पड़ती है , फिर उठती नहीं) लो मुखिया जी .
( समूह के साथ नन्द कन्या को दूध में डुबोते हुए अचानक रुक जाता है )
नन्द : क्या ऐसा करना आवश्यक है ..
बुजुर्ग : परमावश्यक है , स्त्रियाँ अधिक होंगी तो व्यभिचार फैलेगा..
सुजन : गाँव पर आक्रमण होंगे स्त्रियों के लिए ...
पात्र : संपत्ति जमाइयों को देनी पड़ेगी
बुजुर्ग : आज क्या बात है ? पहले तो कभी तुम्हारे हाथ नहीं काँपे ?
बिठूर : जब तुम्हारे घर कन्या हो, तो दया दिखाना , मैं ये समस्या नहीं पाल सकता, तुम नहीं कर सकते मुखिया तो मुझे दो ...
नन्द : तुम्हीं से अपनी स्त्री नियंत्रित नहीं हो रही थी , हमारा क्या है , लो....
(नन्द और कई पुरुष मिलकर एक बच्ची को दूध में डुबोते हैं)
छात्रा- यशोदा ने माधवी की मदद नहीं की..एक बच्ची की हत्या का विरोध नहीं किया, औरत होकर भी.!
टीचर- ऐसी बहुत सी औरतें हैं जिनका केवल शरीर औरत का है , बाकी वे मर्द हो चुकी हैं , मर्द की ग़ुलामी में रहकर...
छात्रा- एक बात तो समझ आ गयी टीचर, कि जब बच्ची को कृष्ण से बदला गया, यशोदा सचमुच ‘बेहोश’ थी... आगे की कथा सुनाइए न.. क्या यशोदा कभी होश में आयी ? और उसके बाद क्या हुआ होगा ?
टीचर : ऐसे बहुत से प्रश्न हैं कि यशोदा ने विरोध किया होगा या चुप रही होगी ? अगर विरोध किया तो उसका परिणाम क्या हुआ ? इतिहास में कहीं यशोदा का पक्ष है ही नहीं .
छात्रा : तब सच का पता कैसे लगेगा ?
टीचर : इस बारे में जितने सवाल हैं उतनी ही कहानियां .. इनमें से सच क्या है ये तुम्हें तय करना है..?
( भयानक आवाजें पूतना का गर्जन )
दृश्य – ६
नन्द – सुजन, कल रात क्या राक्षसी को पुनः देखा गया है ? कहाँ ?
सुजन - बहुत बड़ा संकट आ गया है मुखिया वो तीन दुधमुंहे बालकों पर आक्रमण कर चुकी है, मैंने स्वयं उसे रात में बिचरते देखा है.
नन्द- सभी को एक होकर उसका सामना करना होगा.
सुजन - कैसे सामना करेंगे मुखिया वो भयानक और मायावी है, लोगों के देखते- देखते अदृश्य हो जाती है. सौ हाथियों सा उसमें बल है.
नन्द- ठोस सूचना क्या है रात में कहाँ से आती है, दिन में कहाँ चली जाती है ?
सुजन - वो स्वयं को पूतना कहती है इसके अतिरिक्त किसी को कुछ पता नहीं. बालकों को खाने वाली राक्षसी विचर रही है, लोग भयभीत हैं, ग्वाले वन कैसे जाएँ ? दूधिये दूध बेचने कैसे जाएँ ?
नन्द- कार्य छोड़ कर घर पर कब तक बैठा जा सकता है, राक्षसी ने दिन में तो आक्रमण नहीं किया है ! अच्छा ये कहो कि उसे अंतिम बार कहाँ देखा गया ?
सुजन –उसे ... किसी ने यमुना तट की ओर जाते देखा था..
नन्द- यमुना तट मेरा संदेह ठीक था..उसे मथुरा के राजा कंस ने ही भेजा है, वो मेरे पुत्र कृष्ण को ढूंढ कर मारना चाहता है...
सुजन - क्या कह रहे हो मुखिया..?
नन्द- कुछ नहीं... रात्रि में प्रहरी बढ़ाने होंगे.. युवकों की टोलियाँ बना कर यमुना तट पट भेज दो... देखते ही पूतना का वध होना चाहिए..
सुजन : उसे कैसे खोजेंगे वो तो अदृश्य..
नन्द- वायु से, जल से, भूमि के भीतर से कहीं से भी खोजकर उसे समाप्त करो.. मुझे पूतना का शव चाहिए.... चलो मैं आ रहा हूँ. (सुजन का प्रस्थान- यशोदा का आगमन)
यशोदा- कंस मेरे कान्हा को क्यों..
नन्द- ऐसा नहीं है
यशोदा- उसने पूतना को किस कारण भेजा है.. बताइये ?
नन्द- पूतना बालकों को खाने वाली राक्षसी है, केवल हमारा गाँव उसके मार्ग में पड़ गया है...
यशोदा- तब वो मेरे बालक को क्यों खोज रही है.. बताइए .. आप मुझे कुछ बताते क्यों नहीं बताइये.
नन्द – तुम पति से प्रश्न करोगी ?
दृश्य - ७
( यशोदा का आँगन कुछ पुरुष एक अचेत स्त्री को लेकर आते हैं )
पुरुष १ - यशोदा... ओ बहुरिया..
यशोदा- हे ईश्वर ! ये कौन स्त्री है ?
पुरुष २ - ग्वालों को यमुना तट पर ये साध्वी मिली हैं.
यशोदा- इन्हें क्या हुआ है ?
सुजन - ऐसा प्रतीत होता है पूतना ने ही इनकी ये दशा की है. मुखिया ने कहा है कि तुम इनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखो, संभव है चेतना लौटने पर ये पूतना के विषय में कुछ बता सकें.
यशोदा- ठीक है उनसे कह देना कि वैद्य को लेते आयें.
पुरुष ३ – ठीक है कहते हैं.. (प्रस्थान)
यशोदा – हे ईश्वर ये तो माधवी है.
दृश्य – ८ (पहरेदारी करते हुए लोग)
सुजन – देवकी और वसुदेव का आठवां पुत्र कंस का वध करेगा, ऐसा जानकर उसने उन दोनों को कारगार में डाल दिया.
पात्र १ – कारागार में..?
सुजन - एक- एक कर उनके सात शिशुओं का कंस ने वध कर दिया.
पात्र २- अभी तो तुमने कहा कि देवकी और वसुदेव कारगर में थे..
सुजन - क्यों क्या कारागार में प्रजनन नहीं हो सकता ?
पात्र ३ - किन्तु उन दोनों को कारागार के एक ही कक्ष में क्यों रखा गया ?
पात्र-१,२,३ – हा हा हा , क्या कंस इतना मूर्ख है.
सुजन - ये उपहास का समय नहीं है. हम सब ब्रजवासी भीषण संकट में हैं और इसका कारण मुखिया है.
पात्र १,२,३ - मुखिया...?
सुजन – मुखिया ने देवकी – वसुदेव के आठवें पुत्र को अपने घर में रखा है.
पात्र १,२,३ - क्या कहते हो...???
सुजन - कृष्ण मुखिया का पुत्र नहीं...
(भयानक आवाजें )
सभी - ये तो पूतना का स्वर है ... बचो... (भगदड़)
दृश्य – ९
यशोदा- कल की रात भयानक थी मैंने घर के समीप ही पूतना का गर्जन सुना है... मुझे कृष्ण की बहुत चिंता है.. बताइये न कंस क्यों मेरे बालक को मारना चाहता है..?
नन्द- कृष्ण की चिंता मुझे भी है. पूरे गाँव का मुखिया हूँ, अपना घर नहीं देखूंगा ? तुम जाकर देखो साध्वी का स्वास्थ्य कैसा है ?
यशोदा- वो बिठूरे की स्त्री है माधवी, उसका कंस से क्या सम्बन्ध ?
नन्द- बिठूरे की पत्नी ? हाँ....अच्छा, बिठूरे ने उसे त्याग दिया था, जो भी हो अब वो साध्वी हैं संभव है कि उन्हें पूतना के विषय में कुछ ज्ञान हो.
यशोदा- आप बार-बार कंस वाली बात क्यों टाल जाते हैं.. मेरे पुत्र के प्राणों पर संकट क्यों है...बताइये ?
नन्द- नहीं है कृष्ण तुम्हारा पुत्र...
यशोदा- तो..
नन्द- कृष्ण मेरा भी पुत्र है.. मुझे भी उतना ही प्रिय है.(मौन) ज्योतिषियों ने कहा है यशोदा ! कि कृष्ण बड़ा हो कर प्रतापी राजा बनेगा.. संभवतः इसीलिए कंस उसे अपनी सत्ता के लिए संकट समझता हो... चिंता न करो हम शीघ्र ही पूतना का वध करेंगे.
यशोदा- हे माता अनसूया अपने दिए लाल की रक्षा करना..
दृश्य – १०
(साध्वी का गीत)
बिटिया रानी, बिटिया री रानी,निंदिया री बैरी होय
बिटिया सुन तो, बंद नयन को , स्वप्न न मीठो होय
नार जगत में कोख भयी है,कोख जगत की माय
कोख पे ही प्रतिबन्ध लगे हैं ,कोख को न दोहराय
बेल पे ही सब पुष्प लगे हैं बेल ही बैठी रोय....
बिटिया रानी, बिटिया री रानी , निंदिया री बैरी होय..
आप परायो धन री बिटिया, लक्ष्मी होवे नाम
नाम से जीवे पिता-पति के नाहिं री अपनो धाम
नार ही अपनी आप सखी है, और न बूझो कोय
बिटिया सुन तो, बंद नयन को, स्वप्न न मीठो होय
यशोदा- देवताओं की कृपा है .. क्या अब आप स्वस्थ हैं? आपको घाव लगे थे और ज्वर भी था, आप मेरे पति और ग्वालों को यमुना तट पर अचेत मिली थीं.
साध्वी- यमुना तट पर ?
यशोदा- मेरे पति आपको यहाँ पर लाये और कहा कि स्वास्थ्य लाभ के लिए मैं आपकी सेवा करती रहूँ .
साध्वी- ईश्वर तुम पर दया करे यशोदा तुम और नन्द बड़े दयालु हो.
यशोदा- क्या आप पूतना राक्षसी के विषय में जानती हैं ?
साध्वी- पूतना ? राक्षसी ?
यशोदा- ज्योतिषियों ने कहा है कि मेरा पुत्र कृष्ण बड़ा होकर प्रतापी राजा बनेगा, मेरे पति को संदेह है कि इसीलिए मथुरा के राजा कंस ने पूतना को भेजा है .. मेरे छोटे से बालक को...
साध्वी- तुम्हारा बालक ? किन्तु तुमने तो कन्या को जन्म दिया था...
यशोदा- आप अभी स्वस्थ नहीं लगती...
साध्वी – तुम्हारा वंश सुरक्षित रहेगा यशोदा तुम्हारे घर कन्या जन्मी..
यशोदा- वंश पुत्रों से चलते हैं.. आपको विश्राम करना चाहिए.
साध्वी – वंश स्त्री का होता है पुरुष का नहीं, पुरुष की भूमिका केवल गर्भाधान की है... स्त्री तो कोयल जैसी होती है यशोदा ! जो कौवे के घोंसले में अंडे देती है, अब घोंसला चाहे किसी कौवे का हो बच्चे तो कोयल के ही होते हैं, वंश तो कोयल का ही होता है.
यशोदा- आपको अभी भी ज्वर प्रतीत होता है...
साध्वी- बहू पतिव्रता न हो तो पुत्र का वंश समाप्त हो जाता है. किन्तु जमाई कैसा भी व्यभिचारी निकले, कन्या तुम्हारा वंश बढ़ाएगी ही... तुम्हारी नानी , तुम्हारी माता, तुम और तुम्हारे पश्चात् तुम्हारी कन्या... तुम भाग्यशाली हो यशोदा.
यशोदा- मैंने नहीं आपने कन्या को जन्म दिया था.
साध्वी- मैंने एक नहीं पांच कन्यायें उत्पन्न कीं, उन सभी को मार दिया गया. और पुत्र न देने के कारण पति ने मुझे त्याग दिया.
यशोदा- तब आप साध्वी बनी ..
साध्वी- त्यागी गयी स्त्री कहाँ जाए यशोदा ? या तो साध्वी बन जाए या वैश्या ..!
यशोदा- छिः आप साध्वी होकर कैसी बातें करती हैं...
साध्वी – आह ये पीड़ा ..
यशोदा – विश्राम करें, वैद्य को बुलाती हूँ.
साध्वी – तुम्हारी कन्या कहाँ है यशोदा देखूं तो..
यशोदा- कन्या नहीं पुत्र...
दृश्य – ११
नन्द – क्या क्या प्रबंध हो गया सुजन ?
सुजन – सभी घरों से कम से कम एक पुरुष को रात्रि प्रहरी बनाया है , सशस्त्र प्रहरियों की टोलियाँ रात भर गाँव में भ्रमण कर रही हैं .
नन्द : संवेदनशील स्थानों पर जाल बिछा दो. यमुना की दिशा में मार्ग पर गहरे गड्ढे खोद कर घास से ढँक दो . राक्षसी आये तो गिर पड़े .
सुजन – कार्य द्रुतगति से हो रहा है मुखिया ! एक और महत्वपूर्ण बात मैंने पता लगाई है , क्षमा करें तो कहूँ..
नन्द- कैसी महत्वपूर्ण बात ..?
सुजन – मथुरा से आये हुए एक व्यापारी से मैंने बात की है, उसने बताया कि राजा कंस के कारागार में देवकी और वसुदेव का आठवां पुत्र जन्म लेने वाला था, जो बड़ा होकर कंस का वध करने वाला था...
नन्द- अच्छा .. तब ?
सुजन – किन्तु देवकी को प्रसव हुआ तो रहस्यमय ढंग से वहां पुत्र के स्थान पर कन्या मिली...
नन्द – तब कंस ने क्या किया ?
सुजन – कन्या को तो उसने तत्काल शिला पर पटक कर मार दिया .
नन्द – ओह..! निर्दयी ... नराधम .
सुजन – इसमें क्या है ? कन्या को तो वैसे भी मार ही देते हैं ...
नन्द – कुछ नहीं .. ये कहो व्यापारी ने और क्या कहा ?
सुजन – कंस को संदेह है कि वसुदेव ने अपने पुत्र को कहीं छुपा दिया है. इसीलिए उसने चारों दिशाओं में मायावी राक्षसों को खोज में भेजा है ..
नन्द – मेरा संदेह ठीक था, पूतना को कंस ने ही भेजा है.
सुजन – किन्तु यहाँ इस छोटे से ब्रजग्राम में क्यों ? अच्छा मुखिया बालक कृष्ण तो सकुशल है न .
नन्द- हाँ सकुशल है, सकुशल है ... तुम जाओ, प्रहरियों को सचेत करो
( सुजन का प्रस्थान – यशोदा का आगमन )
नन्द – साध्वी ने क्या बताया ?
यशोदा- या तो अत्यधिक ज्वर से उसे सन्निपात हो गया है या वो विक्षिप्त हो चुकी है.
नन्द- उन्होंने क्या बताया ?
यशोदा- कहती है कि मैंने कृष्ण को नहीं कन्या को जन्म दिया.. बार- बार कहती है कन्या कहाँ है ?
नन्द- उन्हें उपचार की आवश्यकता है... पूतना के विषय में ...
यशोदा – वो किसी पूतना को नहीं जानती...
नन्द – उन्हें अवश्य किसी गूढ़ रहस्य का ज्ञान है .. उनका ठीक होना महत्वपूर्ण है, मैं वैद्य को बुलाता हूँ .
दृश्य – १२
नन्द- साध्वी को क्या हुआ है वैद्य जी..मुझे प्रतीत होता है कि उन्हें राक्षसी के रहस्य का ज्ञान है..
वैद्य- उन्हें अवश्य ही कोई भयानक अनुभव हुआ है..
नंद – कैसा भयानक अनुभव क्या उन्होंने कुछ बताया ?
वैद्य – वो भांति- भांति की बातें कहती हैं,उनकी बातों में तारतम्य नहीं है, ये संभव है कि पूतना से सामना होने के कारण उन्हें आघात पहुंचा हो.. उनके स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करनी होगी.
नन्द- प्रतीक्षा.. कितनी प्रतीक्षा वैद्य जी.
वैद्य – तुम्हारे लिए और भी बड़ी चिंताएं भी हैं मुखिया. तुमने वसुदेव और देवकी के आठवें पुत्र को शरण देकर कंस से बैर ले लिया है.
नन्द – हाँ किन्तु आपको..
वैद्य – समूचे ब्रजग्राम को ज्ञात है मुखिया..,लोगों में तुम्हारे प्रति आक्रोश है, वे तुम्हें सारे संकट का कारण मानते हैं.
नन्द- ओह !
वैद्य- इस संकट का शीघ्र ही कोई समाधान ढूंढो. अन्यथा ग्रामवासी तुम्हें मुखिया पद से हटा देंगे, तुमने गाँव को संकट में डाला है मुखिया नहीं रहोगे तो गाँव को संकट में डालने के कारण मृत्युदंड पाओगे, तब तुम्हारे परिवार और उस शरणागत बालक का भविष्य क्या होगा..?
नंद- ऐसा नहीं होगा .... किसी भी दशा में आज की रात पूतना की अंतिम रात होगी.
दृश्य – १३
नन्द – कुत्तों के भौंकने और पशुओं के रंभाने से राक्षसी की दिशा निश्चित होगी. जहाँ से भी ऐसा कोलाहल सुनाई दे, वहीँ पीछे से अचानक एक साथ आक्रमण कर उसे समाप्त करना है.
सुजन – राक्षसी अन्यत्र क्यों जाए मुखिया, उसे तुम्हारे घर ही आक्रमण करना चाहिए, समस्या का कारण तो यहीं है.
नन्द – सुजन...! अपनी सीमा में रहो.
सुजन – उल्लंघन किसने किया है पूरा ब्रजग्राम जानता है. तुम्हारे कारण आज पूरा गाँव संकट में है.
नन्द – विद्रोह तुम फैला रहे हो....
(भयानक कोलाहल)
नन्द – प्रहरी आओ राक्षसी समीप ही है. (प्रस्थान)
यशोदा – अपना ध्यान रखिये...
(यशोदा द्वार तक जाती है,पिछले द्वार से पूतना का घर में प्रवेश, कृष्ण को उठा कर स्तनपान कराती है)
यशोदा – कान्हा... मेरा बालक मुझे दो , राक्षसी !
पूतना – दूर हटो ! मुझे दूध पिलाने दो.
यशोदा – मेरे छोटे से बालक ने किसी का क्या दोष किया है ? तुम्हारे राजा कंस से कहना अपनी सत्ता सम्हाले रहे, मेरे बालक से उसे कोई संकट नहीं होगा, मैं वचन देती हूँ, उसे विष लगा हुआ स्तनपान मत कराओ....
पूतना – कंस कौन है ? क्या वह माता से कन्या को छीन लेता है ?
(नन्द और प्रहरी पूतना को घेर लेते हैं)
सुजन- प्रहरी आओ, अपने गाँव की रक्षा करें. राक्षसी को समाप्त कर दें.
नन्द- रुको उसके पास बालक कृष्ण है.. सावधानी से अवसर देख कर ..
यशोदा – मेरा बालक लौटा दो पूतना, तुम मेरे प्राण लेलो.
पूतना – तुमने कन्या को जन्म दिया है मूर्ख स्त्री..! मुझे कन्या को दूध पिलाने दो.
नन्द – तुम्हें भ्रम हुआ है पूतना.. यशोदा की कन्या को मैंने जन्म के समय ही वसुदेव और देवकी के पुत्र से बदल दिया था, ये बालक कृष्ण है, यशोदा की कन्या को तो कंस कब का मार चुका है..! इसे लौटा दो.
पूतना – धूर्त नन्द ... तुम छल कर रहे हो.. मुझसे कन्या छीनना चाहते हो.
यशोदा – माधवी ... माधवी ये तुम हो !
( नन्द और प्रहरी असावधान बालक छीन कर पूतना को मार डालते हैं)
नन्द- ये लो यशोदा तुम्हारा पुत्र !
यशोदा – माधवी पूतना नहीं थी.
( समाप्त )
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