भेज रही है अब तक मुझको चाहत के पैग़ाम
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
*
वो औरत जिसके होंटों पर नाचे मेरे गीत
जिस की बढती शोहरत को मैं समझू अपनी जीत
सब दुनिया को छोड़ के जिस ने मुझे बनाया मीत
सुनता हूँ दिन रात में जिस के सांसों का गीत
*
छाये मेरे ज़हन पे अक्सर बन बन के इल्हाम
सांवली सी इक औरत जिस का मर्दों जैसा नाम
*
उभरे उभरे होंट हैं उस के खिलते सुर्ख गुलाब
उसकी रंगत मुस्तकबिल का धुंधला धुंधला ख्वाब
उसके नगमो की लय पर बहता है मस्त चिनाब
उसकी चाल चकोरों जैसी उसका बदन किमख्वाब
*
प्यास भड़कती है जब मेरी बन जाती है जाम
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
*
मैं जब उसका ज़िक्र करूँ तो चौंक पडें सब लोग
कोई नसीहत करे मुझे और कोई मनाये सोग
देख सका है कब कोई दो रूहों का संजोग
उस बेचारी को सब जानें मेरी जान का रोग
*
मेरी खातिर सहती है सब दुनिया के दुश्नाम
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
*
मैं कहता हूँ इन पागलों से छोडो पिचलि बात
अपने प्यार से मैंने उस के बदल दिये दिन रात
दौलत वाले उसे खरीदें ? क्या उन की औकात
बरसेगी अब मेरे ही आँगन में ये बरसात
*
मेरी ही चाहत का लेगी अपने सर इलज़ाम
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
छोड़ के अस्मत की मंदी और जिस्मों का बाज़ार
पेश करे ऊँचे महलों में वोह फन के शाहकार
मान लिया है सब ने उसको एक सच्ची फनकार
ज़ेब नहीं देता अब उसको ये गन्दा व्योपार
*
औरों के मानिंद भला कब होती है नीलाम
सांवली सी एक औरत मर्दों जैसा उसका नाम
*
मान लिया कुछ और थी पहले इसके प्यार की रीत
एक ही सुर पर कभी न कायम था उसका संगीत
फिर भी सब कुछ छोडके उसने मुझे बनाया meet
जब तक वो चाहेगी अंधे रहेंगे मेरे गीत
*
अपने साथ लिये फिरती है वो मेरा अंजाम
सांवली सी एक औरत मर्दों जैसा नाम
~क़तील शिफ़ाई~
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
*
वो औरत जिसके होंटों पर नाचे मेरे गीत
जिस की बढती शोहरत को मैं समझू अपनी जीत
सब दुनिया को छोड़ के जिस ने मुझे बनाया मीत
सुनता हूँ दिन रात में जिस के सांसों का गीत
*
छाये मेरे ज़हन पे अक्सर बन बन के इल्हाम
सांवली सी इक औरत जिस का मर्दों जैसा नाम
*
उभरे उभरे होंट हैं उस के खिलते सुर्ख गुलाब
उसकी रंगत मुस्तकबिल का धुंधला धुंधला ख्वाब
उसके नगमो की लय पर बहता है मस्त चिनाब
उसकी चाल चकोरों जैसी उसका बदन किमख्वाब
*
प्यास भड़कती है जब मेरी बन जाती है जाम
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
*
मैं जब उसका ज़िक्र करूँ तो चौंक पडें सब लोग
कोई नसीहत करे मुझे और कोई मनाये सोग
देख सका है कब कोई दो रूहों का संजोग
उस बेचारी को सब जानें मेरी जान का रोग
*
मेरी खातिर सहती है सब दुनिया के दुश्नाम
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
*
मैं कहता हूँ इन पागलों से छोडो पिचलि बात
अपने प्यार से मैंने उस के बदल दिये दिन रात
दौलत वाले उसे खरीदें ? क्या उन की औकात
बरसेगी अब मेरे ही आँगन में ये बरसात
*
मेरी ही चाहत का लेगी अपने सर इलज़ाम
सांवली सी इक औरत जिसका मर्दों जैसा नाम
छोड़ के अस्मत की मंदी और जिस्मों का बाज़ार
पेश करे ऊँचे महलों में वोह फन के शाहकार
मान लिया है सब ने उसको एक सच्ची फनकार
ज़ेब नहीं देता अब उसको ये गन्दा व्योपार
*
औरों के मानिंद भला कब होती है नीलाम
सांवली सी एक औरत मर्दों जैसा उसका नाम
*
मान लिया कुछ और थी पहले इसके प्यार की रीत
एक ही सुर पर कभी न कायम था उसका संगीत
फिर भी सब कुछ छोडके उसने मुझे बनाया meet
जब तक वो चाहेगी अंधे रहेंगे मेरे गीत
*
अपने साथ लिये फिरती है वो मेरा अंजाम
सांवली सी एक औरत मर्दों जैसा नाम
~क़तील शिफ़ाई~
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