भुला दो सब अज़ाबो-ग़म ,नयी दुनिया बसाने को।
जड़ें पिछली हटाते हैं , नये दरख्त लगाने को ॥
वहीं हम दिल लगाते हैं ,जहाँ अपना सुकूं देखें।
फिर इसको इश्क कहते हैं,ज़माने में दिखाने को॥
तुम इक उम्मीद की तीली,हमेशा साथ में रखना।
अँधेरा एक मौका है ,कोई दिया जलाने को॥
तबीयत बुझते-बुझते भी, मेरी रंगीन हो बैठी।
किसी ने फूल बरसाए ,सितम का रंग छुपाने को॥
पतझड़ ,जाड़ा ,गर्मी हो ,बारिश हो या गुल रुत हो।
सभी मौसम परीशां हैं,हुनर अपना दिखाने को॥
अगर वो बेवफ़ा हो कर,मुझे भुलाना चाहेगा।
उसे मैं भूल जाऊँगा ,वफ़ा अपनी निभाने को॥
(दीपक तिरुवा)
3 comments:
सुन्दर गीत,
सुन्दर भाव।
बहुत सुन्दर रचना
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
sundar bhav
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