ख़बर के लिए ऐसी दशा में अभीष्ट है की वह अपनी भूमिका का जीर्णोद्धार करे। उसकी सार्थकता अख़बार के पन्ने भर कर अंततः रद्दी हो जाने या महज़ टी .आर .पी. के खेल में नहीं है , उसे चाहिए कि वह धनात्मक रूप से अपनी काया में कुछ फेर - बदल करे ।
Tuesday, January 13, 2009
ख़बर बासी क्यों हुई...?
अब या तो ख़बर उद्वेलित करने के लिए छापी या प्रसारित नहीं की जाती या रोज़ सुबह, 'आज की ताज़ा ख़बर / ब्रेकिंग न्यूज़ ' ,कह कर अख़बार टी. वी. वाले हमें ठग जाते हैं ,.....क्योंकि ख़बर तो बासी हो चुकी है। हमारे निरंतर पढ़ने-देखने के अभ्यास और उसकी निरंतर प्रसारण की नियति ने उसकी ताज़गी को लील लिया है और कुछ न कर पाने के कारण वह बासी हो गयी है । उदाहरण के लिए महिला सन्दर्भ की बात करें ,क्या महिला छेड़ -छाड़ ,उत्पीड़न ,बलात्कार जैसी सनसनीखेज़ ,चटपटी , मसालेदार ,ख़बरों की उत्पादक है ?...या खबरें उत्पीड़न-कर्ताओं के संख्या बल का advertisement करना चाहती हैं ?
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