तुम सुनोगी तो हंसोगी,
मेरे दोस्त शाहजहाँ ने
ताजमहल बनवाया है ।
तुम्हें यक़ीनन डाह नहीं होगी
किसी मुमताज से।
तुम जानती हो मैंने तुम्हें
दाल में नमक की तरह चाहा है।
हम आम-अवाम ,
किसी महँगी तामीर से
अपनी मोहब्बत के
अलग या ख़ास होने का
दावा नहीं करते लेकिन....
काँप उठेगा शाहजहाँ गर
संगेमरमर की खदानों की तरफ़
मैं निकलूं ।
और मुमताज
रोज़ जला करती है तुमसे
आख़िर
दाल में नमक तो उसे भी चाहिए ....!
2 comments:
bahut achha blog hai...deepak ji...aapki lekhni ka varsh 2002 se kayal raha hoon....bahut achha likhte hain aap..
shukriya vikram
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