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Saturday, February 28, 2009

ताजमहल और नमक ...!/दीपक तिरूवा

तुम सुनोगी तो हंसोगी,
मेरे दोस्त शाहजहाँ ने
ताजमहल
बनवाया है
तुम्हें यक़ीनन डाह नहीं होगी
किसी मुमताज से
तुम
जानती हो मैंने तुम्हें
दाल
में नमक की तरह चाहा है
हम आम-अवाम ,
किसी महँगी तामीर से
अपनी मोहब्बत के
अलग
या ख़ास होने का
दावा नहीं करते लेकिन....
काँप
उठेगा शाहजहाँ गर
संगेमरमर की खदानों की तरफ़
मैं निकलूं
और मुमताज
रोज़ जला करती है तुमसे
आख़िर

दाल
में नमक तो उसे भी चाहिए ....!

2 comments:

Vikram Negi said...

bahut achha blog hai...deepak ji...aapki lekhni ka varsh 2002 se kayal raha hoon....bahut achha likhte hain aap..

Deepak Tiruwa said...

shukriya vikram