नाटक का हिस्सा आपकी नज़र
(मजनूं का प्रवेश )
मजनूं :-"इश्क़ अल्लाह- हक़ अल्लाह ,इश्क़ अल्लाह- हक़ अल्लाह ...क्या बात है दोस्त क्यों उदास बैठे हो"?
अनूप :-"क्यों भाई ...तुम हो कौन .... क्यों रोज़-रोज़ परेशान करने आ जाते हो...."?
मजनूं :-"मैं कौन हूँ .....हा ह हा हा ...मैं कौन हूँ ..."?
अनूप :-"ठीक है भाई मान लिया तुम मजनूं हो , मजनूँ कभी मरता नहीं वगैरह ....अगर ऐसा है तो सुन लो तुम्हारा समय बहुत अच्छा था ...तुम्हें कभी नौकरी नहीं ढ़ूँढ़नी पड़ी,तुम बेरोजगार नहीं रहे। ...तुम्हारी लैला इंजिनियर नहीं थी ..निवेदिता की तरह वो तुमसे पाँच साल बड़ी नहीं थी । तुम्हारे डैड ने तुम्हें I.A.S. की कोचिंग में नहीं भेजा था ,हमारे समय में 'इश्क़' इतना आसान नहीं है ,अब तुम बताओ भाई मैं क्या करूँ ....?उसके घरवाले समझते हैं उसकी उम्र बढ़ रही है ...दो -चार महीने में कहीं -न-कहीं उसकी शादी करा दी जायेगी इतने कम समय में कोई अच्छी नौकरी कहाँ से लाऊं ...?...तीन -चार लाख तो बारात में लग जाते हैं ...क्या भीख मांग कर इकठ्ठा करूँ ...?किस मुंह से माँ -बाप से कहूँ कि मेरी शादी रचाओ ...काश कोई छप्पर फटे खूब सारा रुपया आ जाए ..!अब मेरी समझ में आ रहा है दोस्त दुनिया में बने रहने के लिए पैसा होना चाहिए ......पैसा......ये अपनी कवितायें ,कहानियाँ ,कला सिर्फ़ बहलावे कि चीजें हैं ...!तुम्हारे वक्त में इतनी मुसीबतें नहीं थीं ,तुम तो फिर भी नाकाम रहे।
मजनूं :-"इश्क़ अल्लाह ...मेरे तुम्हारे दरम्यान बड़ा अजीब रिश्ता है दोस्त ..!मजनूँ नाम के जिस शख्स की तुम बात कर रहे हो वो तो कभी का मर चुका है ...इस वक्त तो तुम अपने भीतर के मजनूँ से बात कर रहे हो ,ठीक तुम्हारी तरह हर आदमी अकेले में मुझसे बात करता है । तुम्हारी मुश्किलात दरअसल इस फ़ानी दुनिया के हर शख्स की मुश्किलात हैं... ज़रा ईमानदारी से सोचो तुम्हारी अड़चनें और ज़रूरतें तुम्हारे 'इश्क़' की नहीं हैं ,तुम्हारी मोहब्बत की नहीं हैं ,ये तुम्हारी दुनियादारी की अड़चनें -ज़रूरतें हैं । तुम्हारे भीतर के मजनूँ को जो तुम ख़ुद हो निवेदिता के इंजिनियर होने या न होने से या फिर पॉँच-सात साल उसकी उम्र कम-ज़्यादा होने से क्या फर्क पड़ता है ..?..इश्क़ करते रहने के लिए बढ़िया नौकरी या ढेर साड़ी दौलत तुम्हारे इश्क़ की... तुम्हारे भीतर के मजनूँ की ज़रूरत नहीं है इस सब की दरकार तुमारी दुनियादारी को ....."
अनूप :-"चुप रहो..... चुप ..तुम एक नाकाम आदमी हो इसीलिए तुम्हें दुनिया छोड़नी पड़ी ...लेकिन मुझे कामयाब होना है और इसी दुनिया में रहना है ...निवेदिता के साथ "।
मजनूं :-सुन कर अच्छा लगा कि तुम मजनूँ के लिए दुनिया जीतना चाहते हो ...इश्क़ अल्लाह -हक अल्लाह ....,इश्क़ अल्लाह....."। (प्रस्थान)
(मजनूं का प्रवेश )
मजनूं :-"इश्क़ अल्लाह- हक़ अल्लाह ,इश्क़ अल्लाह- हक़ अल्लाह ...क्या बात है दोस्त क्यों उदास बैठे हो"?
अनूप :-"क्यों भाई ...तुम हो कौन .... क्यों रोज़-रोज़ परेशान करने आ जाते हो...."?
मजनूं :-"मैं कौन हूँ .....हा ह हा हा ...मैं कौन हूँ ..."?
अनूप :-"ठीक है भाई मान लिया तुम मजनूं हो , मजनूँ कभी मरता नहीं वगैरह ....अगर ऐसा है तो सुन लो तुम्हारा समय बहुत अच्छा था ...तुम्हें कभी नौकरी नहीं ढ़ूँढ़नी पड़ी,तुम बेरोजगार नहीं रहे। ...तुम्हारी लैला इंजिनियर नहीं थी ..निवेदिता की तरह वो तुमसे पाँच साल बड़ी नहीं थी । तुम्हारे डैड ने तुम्हें I.A.S. की कोचिंग में नहीं भेजा था ,हमारे समय में 'इश्क़' इतना आसान नहीं है ,अब तुम बताओ भाई मैं क्या करूँ ....?उसके घरवाले समझते हैं उसकी उम्र बढ़ रही है ...दो -चार महीने में कहीं -न-कहीं उसकी शादी करा दी जायेगी इतने कम समय में कोई अच्छी नौकरी कहाँ से लाऊं ...?...तीन -चार लाख तो बारात में लग जाते हैं ...क्या भीख मांग कर इकठ्ठा करूँ ...?किस मुंह से माँ -बाप से कहूँ कि मेरी शादी रचाओ ...काश कोई छप्पर फटे खूब सारा रुपया आ जाए ..!अब मेरी समझ में आ रहा है दोस्त दुनिया में बने रहने के लिए पैसा होना चाहिए ......पैसा......ये अपनी कवितायें ,कहानियाँ ,कला सिर्फ़ बहलावे कि चीजें हैं ...!तुम्हारे वक्त में इतनी मुसीबतें नहीं थीं ,तुम तो फिर भी नाकाम रहे।
मजनूं :-"इश्क़ अल्लाह ...मेरे तुम्हारे दरम्यान बड़ा अजीब रिश्ता है दोस्त ..!मजनूँ नाम के जिस शख्स की तुम बात कर रहे हो वो तो कभी का मर चुका है ...इस वक्त तो तुम अपने भीतर के मजनूँ से बात कर रहे हो ,ठीक तुम्हारी तरह हर आदमी अकेले में मुझसे बात करता है । तुम्हारी मुश्किलात दरअसल इस फ़ानी दुनिया के हर शख्स की मुश्किलात हैं... ज़रा ईमानदारी से सोचो तुम्हारी अड़चनें और ज़रूरतें तुम्हारे 'इश्क़' की नहीं हैं ,तुम्हारी मोहब्बत की नहीं हैं ,ये तुम्हारी दुनियादारी की अड़चनें -ज़रूरतें हैं । तुम्हारे भीतर के मजनूँ को जो तुम ख़ुद हो निवेदिता के इंजिनियर होने या न होने से या फिर पॉँच-सात साल उसकी उम्र कम-ज़्यादा होने से क्या फर्क पड़ता है ..?..इश्क़ करते रहने के लिए बढ़िया नौकरी या ढेर साड़ी दौलत तुम्हारे इश्क़ की... तुम्हारे भीतर के मजनूँ की ज़रूरत नहीं है इस सब की दरकार तुमारी दुनियादारी को ....."
अनूप :-"चुप रहो..... चुप ..तुम एक नाकाम आदमी हो इसीलिए तुम्हें दुनिया छोड़नी पड़ी ...लेकिन मुझे कामयाब होना है और इसी दुनिया में रहना है ...निवेदिता के साथ "।
मजनूं :-सुन कर अच्छा लगा कि तुम मजनूँ के लिए दुनिया जीतना चाहते हो ...इश्क़ अल्लाह -हक अल्लाह ....,इश्क़ अल्लाह....."। (प्रस्थान)
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