जनाब इब्राहीम 'अश्क' का मुशायरा (साइबर) में मैं स्वागत करता हूँ जनाब 'अश्क'
अपने हाथों से कट गई दुनिया
कितने हिस्सों में बंट गई दुनिया
अस्ल मानी कभी नहीं समझी
सारा क़ुरान रट गई दुनिया ...
हमारे दौर की शायरी को रूमानियत से लबरेज़ रखने वाले जनाब क़तील शिफाई साहब का स्वागत करना चाहूँगा जावेद अख्तर साहब के इस शेर के साथ कि ...
ऐ सफ़र इतना रायगाँ तो न जा,
न सही मंज़िल कहीं तो पहुँचा दे।
जनाब क़तील शिफाई ....
जिसे हम साफ़ पहचानें वही मंज़र नहीं मिलता।
यहाँ साये तो मिलते हैं कभी पैकर नहीं मिलता ॥
हमेशा ताज़ा दम उसके मोहल्ले तक पहुँचता हूँ ।
थकन उस वक़्त होती है वो जब घर पर नहीं मिलता।
उस मालूम है उसका तन, सोने से महंगा है ।
जभी तो वो पहने हुए जेवर नहीं मिलता ॥
परश्तिश कि तमन्ना है मगर हाय री मज़बूरी
सनम जिससे तराशा जाए वही पत्थर नहीं मिलता॥
अगली दावत ए सुखन के साथ यकीनन झूम उठियेगा ...कि अगले शायर हैं जनाब मजाज़
ख़ुद,दिल में रह के आँख से परदा करे कोई
हाँ ,लुत्फ़ जब है पा के भी, ढूंढा करे कोई॥
या तो किसी को ज़ुर्रते दीदार ही न हो ,
या फिर मेरी निगाह से देखा करे कोई॥
तुमने तो हुक़्मे तर्क़े तमन्ना सुना दिया ,
किस दिल से आह तर्क़े तमन्ना करे कोई॥
मैं अहमद 'फ़राज़' के इस शेर के साथ कि...
जिसको देखो वही , जंजीर-ब-लगता है
शहर का शहर हुआ दाखिले-ज़िन्दाँ जानां
दावत-ए-सुखन दे रहा हूँ जनाब अली सरदार जाफ़री ...
जाफ़री :-नज़्म मुख्तसर सी है 'चाँद को रुखसत कर दो'
मेरे दरवाज़े से अब
चाँद को रुखसत कर दो
साथ आया है तुम्हारे
जो तुम्हारे घर से ,
अपने माथे से हटा दो
ये चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से
किरणों का सुनहरी जेवर
तुम ही तनहा मेरे ग़मखाने में
आ सकती हो ,कि एक उम्र से
तुम्हारे ही लिए रक्खा है
मेरे जलते हुए सीने का
दहकता हुआ चाँद
दिले खूँगश्ता का हँसता हुआ
खुशरंग गुलाब ।
और अगले शायर हैं ..
2 comments:
मजा आ गया आपके मुशायरे में आकर.
आगे भी ऐसी महफिलों का इंतज़ार रहेगा
बहुत खूब... बधाई स्वीकार करें...
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